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________________ 5 10 11/18 The seven qualities of a donar. खमवंतउ भत्तिउ तुट्ठिवंतु सद्धावंतउ इय सत्त भेउ जो कोउ न विरयइ सहुँ जहिँ जो मुणि सेवायरु देइ दाणु चित्ति तुट्ठ दिंतहो हवेइ जो दव्वु - खित्तु-वरकालु-भाउ जो किंपि ण कामइ तियरणेहिं जो दव्व-विहीणु वि देइ दाणु मुणिवरहँ दाणु दिंति णरेण एरिस सद्धा मणि हवेइ विण्णाणि अलोलुअ सत्तिवतु ।। दायारु भइ तित्थयरु देउ ।। खमवंत भासिउ सो जिणेहिं । । तं भत्तिवंतु यि चित्ति जाणु ।। तं तुट्ठिवंतु जिणवर लवेइ ।। चिंतइ विण्णाणि सो णरु अपाउ ।। सो भणिउ अलोलु णरु जिणेहिं । । तं सत्तवंतु मुणि हय-णियाणु ।। हियइच्छिउ फलु लब्भइ भरेण । । तं सद्धावंतउ जिणु चवेइ || घत्ता - इय सयल गुणंकिउ णरु णीसंकिउ हवइ पवरु दायारउ । गुणहीणु जहण्णर अइ अपसण्णउ मज्झिमु विविह पयारउ ।। 202 || 11/18 दातार के सात गुण क्षमावान्, भक्तिवान्, तुष्टिवान्, विज्ञानी, अलोलुपी, शक्तिवान् एवं श्रद्धावान् दातार के ये सात भेद तीर्थंकर देव कहे हैं। 234 :: पासणाहचरिउ जो लोगों के प्रति क्रोध नहीं करता, उसे जिनेन्द्र ने क्षमावान् कहा है। मुनिसेवा में तत्पर रहता हुआ जो उन्हें दान देता है, वह भक्तिवान् है, ऐसा अपने मन में समझो। जिसके चित्त में दान देते समय सन्तुष्टि हो, उसे जिनवरों द्वारा तुष्टिवान् कहा गया है। जो द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव को जानता है ( चिन्तन करता है), वह निष्पाप मनुष्य विज्ञानी कहलाता है । जो मन वचन एवं काय से कुछ भी प्राप्त करने की इच्छा नहीं करता उसे जिनेन्द्र ने अलोलुपी नर कहा है। जो स्वयं द्रव्यविहीन होने पर भी दान देता है, उसे निदान रहित मुनियों ने शक्तिवान् कहा है। जो व्यक्ति मुनिवरों के लिये दान देता है, वह अवश्य ही मनवांछित फल को प्राप्त करता है, इस प्रकार की श्रद्धा जिसके मन में होती है, उसे जिनेन्द्र ने श्रद्धावान् कहा है I घत्ता - उक्त समस्त प्रकार के गुणों से जो अलंकृत होता है, और निशंक होकर दान करता है वह उत्तम कोटि का दातार होता है। जो इन गुणों से हीन तथा अप्रसन्न रहकर दान देता है वह जघन्य कोटि का दातार है । किन्तु मध्यम कोटि का दातार विविध प्रकार का कहा गया है ।। 202 ।।
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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