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________________ 5 10 9/9 The number of the celestial chariots or aeroplanes (vimānas) in different heavens. सणकुमारें बारहसय- सहसइँ भू-भुत्तरु सग्गइँ अद्धलक्खु लंतव-काविट्ठहँ सुक्क महासुक्कहिँ विण लक्खिय छट्टि सयसहँ सयार- सहसारहिँ आणय-पाणय आरण-अच्चुअ तिगुणिय सत्तत्तीस पढमिल्लए सत्तोत्तरु सउ होइ दुइज्जए व जि अणुदिसेहिँ सुर विलसहिँ सव्वहिँ मिलिय होंति तेवीसइँ माहिंदइँ पुणु वसु सय सहसइँ ।। सय-सहसइँ चत्तारि अभग्गहिँ । । अच्छर-चरणंभोरुह-घिट्टहँ । । दुगुणिय वीस सहास समक्खिय ।। विप्फुरंत रयणावलि सारहि ।। सत्तएहिँ साहिय ण सुहच्चुअ ।। गेवज्जए बहु सोक्ख समिल्ला ।। एक्काणवइ परिद्विय तिज्जए । । पंचोत्तरहिँ पंचं परिणिवसहिँ । । सत्ताणवह सहास विभीसइँ ।। घत्ता— चउरासी लक्खइँ एत्थु म भंति करेज्जहु । जो पुच्छइ भवियण संसउ तासु हरेज्जउ ।। 153 ।। 9/9 विविध स्वर्गों के देव - विमानों की संख्या-. सानत्कुमार स्वर्ग में बारह लाख, माहेन्द्र स्वर्ग में आठ लाख, अखण्ड ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर स्वर्गों में चार लाख विमान जानो । अप्सराओं के चरण कमलों से धृष्ट, लान्तव एवं कापिष्ठ स्वर्गों में अर्धलक्ष (पचास हजार), अखण्ड शुक्र, महाशुक्र स्वर्गों में चालीस हजार विमान कहे गये हैं। स्फुरायमान रत्नावलि से शोभित सतार एवं सहस्रार स्वर्गों में छः हजार विमान कहे गये हैं। स्फुरायमान रत्नावली से शोभित सतार एवं सहस्रार स्वर्गों में छः हजार, सुखकारी आनत, प्राणत तथा आरण और अच्युत स्वर्गों कुछ अधिक सात-सात सौ विमान कहे गये हैं । अनेक सुखों से युक्त प्रथम ग्रैवेयक में सैंतीस से तीन गुणें अर्थात् एक सौ ग्यारह विमान, दूसरे मध्यक ग्रैवेयक में एक सौ सात और तृतीय उर्ध्व ग्रैवेयक में इक्यानवे विमान बताए गये हैं। नौ अनुदिशों में नौ तथा पाँच पंचोत्तरों में पाँच ही विमान रहते हैं । घत्ता - प्रथम स्वर्ग से लेकर पंचोत्तर विमानों तक सब कुल मिलाकर चौरासी लाख सत्तानवे हजार तेईस विमानों में देवगण विलास करते हुए निवास करते हैं। इसमें किसी भी प्रकार से समझने में भ्रांति मत करो, और जो भव्यजन पूछे, उनका भी संशय दूर करो। ।। 153।। पासणाहचरिउ :: 183
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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