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________________ 9/7 Description of the relative distance of the residences of steller celestial souls (Jyotisi Devas). वितर-भवणहँ संख ण दीसइ महि मुएवि भासिउ जिणदत्तहिँ तारायणु तहो उवरि दिवायरु तासुवि उवरि मलिय कमलायरु पुणु चउ जोयणेहिँ णक्खत्तइँ पुणु चउ जोयणेहिँ बुह-मंडलु पुणु तिहि सुक्कविहप्पिइँ तिहिँ पुणु राहु-विमाणु वहइ सुपमाणहो पंच भेय जोइसिय समक्खिय एव्वहिँ सुणु सोलह कप्पामर णव गेवज्जण बाणुद्दिस उत्तरवर अमर महीहर-उवरिम ठाणए रिउ-विमाणु णामेण भणिज्जइ जहिँ-तहिँ अम्हारिस् किं सीसइ।। णवइ सहिय जोयण सय-सत्तहिँ।। दह जोयणहिँ हेहिय कुमुयायरु।। दह जोयणहिँ असीहिँ णिसायरु।। पवर पसूणाइव विक्खित्तइँ।। णिय किरणुज्जोविय णहमंडल ।। अंगारउ तिहि-तिहि रवि-सुउ पुणु।। तलि-हिमयर अहि-मयर-विमाणहो।। जह जिण-केवलणाण णिरिक्खिय।। अच्छरयणकरचालियचामर।। पुणु पवरामर पंचाणुत्तर।। सुरवर कीला-सोक्ख णिहाणए।। मोक्ख-सिला-पमाण जाणिज्जइ।। घत्ता- तासुप्परि सुहयर सोहम्मीसाणक्खइ।। बे कप्पह पुणरवि सणंकुमार माहिंदइ।। 151 ।। 977 ज्योतिषीदेवों के निवास-स्थलों की पारस्परिक दूरी व्यन्तरों एवं भवनवासियों की संख्या दिखलाई नहीं देती। वे जहाँ-तहाँ हम लोगों में मध्य में और पर्वतों या मंदिर शिखरों पर निवास करते हैं ऐसा जिनेन्द्र देव ने कहा है। इस समतल भूमि के सात सौ नब्बे योजन प्रमाण भाग को छोड़कर उसके ऊपर तारागण निवास करते हैं। उनसे दस योजन ऊपर जाकर कुमुदों को विकसित तथा संकोचने वाले सूर्य के विमान हैं। उनसे भी दस योजन ऊपर कमलाकरों को मुद्रित करने वाले समस्त निशाकरों को निवास स्थान है। उनसे भी चार योजन ऊपर नक्षत्रों के विमान हैं, जो उत्तम फूलों के समान बिखरे हुए हैं। उनसे चार योजन ऊपर जाकर अपनी किरणों से गगन को उद्योतित करने वाले बुध-मण्डल के विमान हैं। उनके तीन योजन ऊपर शुक्र के विमान, फिर तीन योजन ऊपर बृहस्पति के, फिर तीन योजन ऊपर मंगल के। उनसे तीन योजन ऊपर शनि के विमान हैं। आगम प्रमाण से ज्ञात चन्द्र और सूर्य के विमानों के नीचे राहु के विमान हैं। जैसा जिनेन्द्र ने अपने केवल ज्ञान से देखा है, उसी प्रकार मैंने भी पाँच प्रकार के ज्योतिषी देवों का वर्णन किया है। देवांगनाओं के कर-कमलों द्वारा चालित सेवित चामरों वाले सोलह प्रकार के कल्पवासी देव, नौ ग्रैवैयक, नौ अनुदिश विमान, पुनः उत्तम देवों वाले पंच अनुत्तर विमानों का वर्णन भी सुनो, जो इस प्रकार है- उत्तम देवों की क्रीड़ा और सुख के निधान-भूत मेरु पर्वत के ऊपर सुप्रसिद्ध ऋजु-विमान कहा गया है। उसे मोक्ष-शिला के प्रमाण जितना जानना चाहिए। घत्ता- उसके ऊपर सुखकारक सौधर्म ईशान-नाम का कल्प है। उनके ऊपर दूसरा सानत्कुमार और माहेन्द्र नाम का कल्प है। ।। 15111 पासणाहचरिउ :: 181
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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