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________________ 9/5 Fascinating description of different facets of Hellish life. पढम णरय जे णारय णिवसहिँ अवहिणाणु तहो जिणवर भासहिँ।। जोयणेक्क चिर-वइरिउ पेक्खेवि रयणु रयंति वेरत्तु समक्खेवि।। अद्धकोस ऊणउ वीयहे पुणु तिण्णि कोस तिज्जइ तुरियए सुणु।। सडद्धइँ विण्णि कोस बे पंचमे छट्टे मुणहि विदड्ढ जि सत्तमे।। एक्के जे कोस विहंगे जाणहिँ अवरोप्परु संगर सिरि माणहि।। सरसिय णिवडंति पिहिल्लए वीयए पुणु मज्जार दुहिल्लए।। तिज्जए विहय भुअंग चउत्थए पंचमे पंचाणण तिय छट्ठए।। सत्तमि मणुअ मयर उपज्जहिँ पुवज्जिउ भुंजहि असमज्जहिँ।। सत्तम णरय-धराणेमेल्लेप्पिण जो आवइ बहु दुक्खु सहेप्पिणु।। सो होएवि तिरिउ पुणु नारउ पुणु पावइ मणुअत्तु गुणालउ।। छट्टिहे आयउ लहइ णरत्तणु पर पावइ णा किंपि चरित्तणु।। चराइ चरणु पंचमियहे णिग्गउ पर तहिँ भवे ण लहइ अपवग्गउ।। जाइ मोक्खु जो तुरियहे आवइ परमो तित्थयरत्तु ण पावइ।। तीयहे वीयहे पढमहे णिराइउ णिम्मल केवलणाण विराइउ।। 15 घत्ता- भवेयरु वज्जो वि को वि होइ तित्थंकरु। पर ण हरि ण पडिहरि ण रहंगालंकिय करु।। 149 || 9/5 नारकियों का बहुआयामी रोचक वर्णनप्रथम नरक में जो नारकी जीव रहते हैं, उनके अवधिज्ञान के क्षेत्र का प्रमाण जिनवरों ने इस प्रकार कहा है- प्रथम नारकी जीव एक योजन की दूरी से अपने चिरकालीन शत्रु को देखकर पूर्वकालीन बैर का स्मरण कर सकते हैं। दूसरे नरक में अढाई कोस, तृतीय में तीन कोस, चौथे में अढ़ाई कोस, पाँचवें में दो कोस, छठे में डेढ़ कोस और सातवें में एक कोस है। नारकी जीव अपने विभंग-ज्ञान से इतने क्षेत्र तक जान लेते हैं और परस्पर युद्ध में रत रहते हैं। नरकों की गति-अगति किस प्रकार होती है इसे सुनो- सरीसृप (पेट के बल दौड़ने वाले जीव) मरकर प्रथम नरक में जन्म लेते हैं। दुष्ट-बुद्धि मार्जार दूसरे में, पक्षी तीसरे में, साँप चौथे में, सिंह पाँचवें में, स्त्री छठे में, मनुष्य तथा मगरमच्छ मरकर सातवें नरक में जन्म लेते हैं और वहाँ वे पूर्व जन्म के पापों का फल भोगते हैं। ___अनेक दुःखों को सहन करके सातवीं नरक-धारा से निकला जीव पहले निर्भय होकर तिर्यंच होता है पुनः नारकी होता है। पुनः मरकर वह गुणी सीधा मनुष्य जन्म पाता है। छठवें नरक में निकलकर वह नारकी जीव मनुष्य होता है पर वह चरित्र नहीं ले पाता। पाँचवीं भूमि से निकला हुआ नारकी जीव चरित्र ले पाता है किंतु उसी भव से मुक्ति नहीं ले पाता। चौथे से निकला जीव मुक्त तो हो जाता है परंतु वह तीर्थंकर नहीं हो पाता। तीसरी, दूसरी एवं पहली नरकधारा से निकला जीव निर्मल केवल ज्ञान प्राप्त कर सकता है। घत्ता- भव्येतरों को छोड़कर कोई भी मनुष्य तीर्थकर हो सकता है। किंतु वह हरि (नारायण) या प्रतिहरि (प्रतिनारायण) और चक्रवर्ती-पद को प्राप्त नहीं करता। ।। 1491। पासणाहचरिउ :: 179
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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