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________________ 20 घत्ता- सो फुडु अवयरिउ परमपरु विणिवारिय जम्मण-मरण-डरु। जो आएसइ लहु सिवणयरे चउगइ-परिगय-महदुह-खयरे ।। 138 ।। 8/7 Surendra (the Head of the Celestial souls) arrives from Heaven near Pārswa and furiously hits the Demon (Kamatha) with his Bajradanda (Divine Weapon). वत्थु-छन्द-एत्थु अवसरे चलिउ हरिवीद। भावणहँ वितरहँ तहँ जोइसाहँ तियसाहँ रायहँ। दह-अट्ठ-पण सोलसहिँ भेयगयहँ सुरवण्ण कायहँ।। मेल्लिवि सिंहासणु तुरियउ सत्त-पय जाएवि। णविउ सुरिंदहि पासु जिणु कर अंजलि विरएवि।। छ।। भत्ति जुत्तओ पुणो आरुहेवि भासुरं धीरिमाए मंदरो अच्छरावली जुओ दुंदुही रवालओ विप्फुरंत सेहरो मेल्लमाणुवोमयं पेक्खमाणु तारयं देवविंदराइओ तेत्थु धम्मवंतओ महागुणो।। करीसरं।। पुरंदरो।। महाभुओ।। विसालओ।। मणोहरो।। सुसोमयं ।। सुतारयं।। पराइओ।। तुरंतओ।। 15 घत्ता- वह स्पष्ट ही परम्परा से अवतरे हैं, जन्म-मरण के डर को मिटाने वाले हैं, जो शीघ्र ही शिवनगर में जाएँगे और चतुर्गति में प्राप्त होने वाले महादुःखों का क्षय करेंगे। ।। 138 ।। - 8/7 सुरेन्द्र पार्व प्रभु के समीप आता है तथा क्रोधित होकर वह कमठ पर बजदण्ड से प्रहार करता है वस्तु-छन्द- उसी अवसर पर इन्द्र का आसन कम्पित हो उठा। 10 प्रकार के भवनवासी, 8 प्रकार के व्यन्तर, 5 प्रकार के ज्योतिषी एवं 16 प्रकार के सुंदर शरीरधारी देवों के आसन कम्पायमान हो उठे। सुरेन्द्र ने तुरंत ही अपना सिंहासन छोड़कर तथा 7 पद आगे बढ़कर पार्श्व प्रभु को अंजुलिबद्ध प्रणाम किया।। छ।। पुनः भक्तियुक्त होकर महागुणी भास्वर (शुभ्रवर्णवाले) ऐरावत करीश्वर पर आरूढ़ होकर, मन्दर (सुमेरु) के समान धीर तथा महान भुजाओं वाला तथा अपनी अप्सराओं के साथ विशाल तथा दुन्दुभि की मनमोहक ध्वनियों के साथ, स्फुरायमान मनोहर खेचरों वाला वह सुरेन्द्र सुसौम्य नभस्तल को छोड़ता हुआ, सुंदर-सुंदर ताराओं तथा ग्रह-नक्षत्रों को देखता हुआ, देववृन्द से आवृत्त एवं सुशोभित वह धर्मात्मा (सुरेन्द्र) तुरंत ही वहाँ आ पहुँचा जहाँ पासणाहचरिउ :: 167
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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