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________________ 10 सुसारम्मि एत्यंतरे साल साले महाभूहराहीसतुंगे विसाले ।। गवक्खग्ग दिप्पंत मुत्तापवाले सुसेलिंधलुद्धालि-मालारवाले।। सराणं मणोहारि किम्मीर-कम्मे पलंबंत घंटाटणक्कार रम्मे ।। फुरंतोरु माणिक्क-कंती-तमोहे मराली चलच्चामराली विमोहे ।। पभाभार उज्जोइया सेस वोमे मरुभूअ चिंधावली चारु पोमे।। विचित्तावभासंत णाणा दुवारे विमाणग्ग संदिण्ण सोवण्णवारे ।। सुरावाल सीमंतिणी गीय गेए खरंसुप्पहा वारणे वायवेए।। णडंतामराणी पियादिण्णतोसे दंडी-झल्लरी-वेणु-वीणा-सुघोसे ।। दिसासास वासंत णिग्गंतवासे ससोहा जियाहिंददेविंद वासे।। 15 घत्ता- एरिसए विमाणे समारुहेवि दिप्पंतउ पहरणु संगहिवि। तणु तरणि किरण परिविप्फुरिउ विहरण कीलारइ-रस-भरिउ ।। 117 || 714 The Aeroplane (Vimāna) of the demon king Meghmali (Kamatha) suddenly struck in the midway due to the influence of extra-ordinary penance of PārŚwa Muni. वत्थु-छन्द- जाम गच्छइ विउल गयणयले। स विमाण मज्झट्ठियउ असुरराउ णावइ सुरेसरु। संपत्तु तहिँ जहिँ ठियउ तणु विसग्गु विरएवि जिणेसरु ।। इसी बीच में सारभूत उत्तम शिखरों से सुशोभित, महाभूधराधीश (पर्वतराज) के समान उत्तुंग एवं विशाल मोतियों एवं प्रवालों से सुदीप्त गवाक्षाग्र-भाग वाले, पुष्पों की सुगन्ध से लब्ध भ्रमरों से शब्दायमान, देवों का मनोहरण करने वाले चित्र-विचित्र चित्रों से चित्रित, लटकती हुई घण्टियों की टंकार से रम्य, स्फुरायमान विशाल माणिक्यों की छटा से अन्धकार को मिटाने वाले, हंसनी के समान चलायमान चामरों से मोहित करने वाले, अपनी प्रभा के भार से समस्त आकाश को उद्योतित करने वाले, पवन से स्फुरायमान तथा सुन्दर कमलों के समान ध्वजावलि की उत्तम शोभा से सम्पन्न, विमान के अग्रभाग में प्रदत्त स्वर्ण निर्मित सोपान-मार्ग से शोभित, सुरबाला-सीमन्तनियों के सुन्दर संगीत से पूर्ण, सूर्य की प्रखर किरणों को रोकने वाले, पवन वेग से चलने वाले, नृत्य करती हुई देवांगनाओं को प्रिय, सन्तोष प्रदान करने वाले, दण्डी, झालर, वेणु एवं वीणा के सुघोषों वाले, उत्तम धूप की निकलती हुई सुगन्धि से दसों दिशाओं को सुगन्धित करने वाले, अपनी शोभा से नागेन्द्र एवं देवेन्द्र के विमानों को भी जीतने वाले,घत्ता— विमान पर आरूढ होकर दीप्त प्रहरणों को लेकर, बाल-सूर्य की किरणों से स्फुरायमान, विहार करने के क्रीडा-रस से भरा हुआ वह असुराधिपति मेघमाली वहाँ आया (117) 714 पार्व मुनीन्द्र की असाधारण तपश्चर्या के प्रभाव से असुराधिपति मेघमाली (कमठ) का विमान बीच में ही अवरुद्ध हो जाता है— वस्तु-छन्द- जब वह असुरराज सुरेश्वर के समान अपने विमान के मध्य भाग में बैठकर विस्तृत आकाश में उड़ा जा रहा था, तभी वह वहाँ पहुँचा, जहाँ पार्श्व जिनेश्वर कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यानारूढ़ थे। सैकड़ों पासणाहचरिउ :: 137
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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