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________________ घत्ता- तेण वि तं णिसुणेविणु समणे मुणेविणु ससि-दिणु ससि-बल गह-तिहि भयणइँ।। केवि अच्चंत विरुद्धइँ केवि विसुद्धइँ अइ छक्कट्ठ तिकोण।। 100 ।। 6/6 King Ravikīrti proposes to Pārswa to marry with his dear daughter - Prabhāwati. जंपियउ कुसत्थल-णयरणाहु समरावज्जिय जयसिरि-सणाह। णरणाह णत्थि जोइसिय सिट्ठ मणहरु विवाह-वासरु-विसिट्ठ।। पर भणमि किंपि तुह पुरउ राय अणवरयदाण पीडिय वराय।। जइ णिव विवाह-वासर-विसुद्धि पावियइ ण कहवइ वि ण रिद्धि ।। ता गोधूलिय-बेलहिँ हवेइ एरिसु णिरुत्तु बुहयणु लवेइ। तं सुणेवि राउ हरिसिय सरीरु गउ तहिँ जहिँ पासकुमारु वीरु।। णिवसइ सुहासिणियरहिँ असज्झे छुहरस-धवलिय-धवलहर-मज्झे। पणएण पाणिसंगहेवि वुत्तु वाणारसिरायहो तणउं पुत्तु।। महु दुहिय देव तुहु परिणि तेम पुज्जति मणोरह मज्झु जेम। तं णिसुणिवि अणुमण्णिउ जवेण पासेण वि तं समणुच्छवेण।। घत्ता- एत्थंतरे जगणाहँ णाणसणाहँ पेक्खिवि सालंकारउ। गच्छंतउ णायर-जणु अइ उच्छुअ मणु विविहंबर विप्फारउ।। 101 ।। घत्ता- उस बिमलबुद्धि ज्योतिषी ने भी राजा का कथन सुनकर अपने मन में चन्द्र-दिन, चन्द्र-बल, ग्रह, तिथि, नक्षत्रों एवं भगणों पर विचार किया। उनमें से कोई-कोई तो अत्यन्त विरुद्ध थे और कोई-कोई विशुद्ध योग्य और कितने ही षडष्टक-योग और त्रिकोण-योग वाले थे। (100) 6/6 राजा रविकीर्ति पार्श्व के सम्मुख अपनी पुत्री प्रभावती के साथ विवाह का प्रस्ताव रखता है समर-भूमि में उपार्जित जयश्री से समृद्ध कुशस्थल के उस नगराधिपति रविकीर्ति से ज्योतिषी ने कहा हे नरनाथ, हमारा ज्योतिष कह रहा है कि इस मनोहर विवाह के लिए यद्यपि अभी विशिष्ट शुभ-दिवस लग्न नहीं आया है. तथापि अनवरत ही दीन-हीन बेचारे पीडित लोगों के लिये दान देने वाले हे राजन. मैं आपके सम्मख यह तो निश्चित रूप से कह ही सकता कि यदि उभय पक्ष के लिये ऋद्धि-दायक विवाह के शभ-दिवस का लग्न कदाचित न मिल सके, तो उसे गोधलि-बेला में कर देना चाहिए. ऐसा बधजनों में उत्तम ज्योतिषियों ने कहा है। __ज्योतिषी का मत जानकर हर्षित होकर राजा रविकीर्ति वहाँ पहुँचा, जहाँ वीरवर कुमार पार्श्व सुखासन पर विराजमान थे। उस समय वे देवों के लिये भी असाध्य छुई-रस से धवलित धवलगृह में निवास कर रहे थे। वहाँ रविकीर्ति ने अत्यन्त प्रेम पूर्वक वाणारसी के नरेश हयसेन के उस सुपुत्र पार्श्व का हाथ अपने हाथ में लेकर कहाहे देव, मेरी पुत्री का तुम वरण करो, जिससे मेरा मनोरथ पूर्ण हो जाय। रविकीर्ति का प्रस्ताव सुनकर उस कुमार पार्श्व ने तत्काल ही हर्षित एवं उत्साहित मन से अपनी अनुमति प्रदान कर दी। घत्ता- इसी बीच में उन ज्ञानी जगन्नाथ (पार्श्व) ने अलंकारों से विभूषित रंग-बिरंगे परिधानों से सजे हुए एवं अतिउत्सुक मन वाले नागरिक-जनों को मार्ग में जाते हुए देखा। (101) 118 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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