SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करि-कुहर पवि सुहि सुहकरणु मणिमय रसणु परियणु भरणु विरइय करणु भुअवल पवलु वर तिय रमणु रिउमय-समणु रहवर दलइ हयवर हण चमरिय लुण सइंरिउ भमइँ फणिवइ तसइ पुणु-पुणु भसइ धर थरहरइ किडिकडयडइ जलणिहि चल हरि कुरुह हवि।। जय-सिरि वरणु।। सलिलह रसणु।। पहरण हरणु।। असरण सरणु।। सिय जस धवलु।। गइवर गमणु।। पडिमड दमणु।। मयगल मलइ।। पडिभड भणइँ।। धयवड धुण।। महियलु कम।। असरिसु हसइ।। परवलु गसइ।। वणरुहु सरइ।। गिरिखडहडइ।। दिणयरु खलइ।। घत्ता- जुझंतहो तहो दप्पुढमडहो जउण णराहिवासु रण महियले। पसरिउ कसाउ मणि विउणयरु वासारत्ति जेम घणु णहयले ।। 93 ।। अग्नि के समान तथा सुख चाहने वाले प्राणियों के लिये सुखी बनाने वाला, जयश्री का वरण करने वाला, मणिमय रसना (करधनी) धारण करने वाला, मेघ के समान घोष करने वाला, परिजनों का भरण-पोषण करने वाला, शत्रुओं के प्रहरणास्त्रों को हरने वाला, करण (परिणामों) को रचने वाला (अर्थात कर्त्तव्यनिष्ठ), निराश्रितों को शरण देने वाला प्रबल भुजबल वाला, धवल यश वाला, उत्तम रमणियों से रमण करने वाला, श्रेष्ठगजों की गति के समान गमन करने वाला, रिपु के मद को शान्त कर देने वाला, प्रतिभटों का दमन करने वाला, शत्रुओं के रथों का दलन एवं मदोन्मत्त गजों को रौंदने वाला, शत्रुओं के श्रेष्ठ घोड़ों का हनन कर डालने वाला, प्रतिभटों को ललकारने वाला, चामरों को काट डालने तथा ध्वजपटों को धुन डालने वाला, शत्रुओं के मध्य स्वच्छन्द रूप से घूमने वाला, महीतल को लाँघ जाने वाला, फणिपति (शेषनाग) को त्रस्त करने वाला, असाधारण हँसी वाला, बार-बार शत्रुओं को ललकारने वाला, शत्रुओं की शक्ति को नष्ट करने वाला, पृथिवी को थर्रा देने वाला, वन-वृक्षों को उखाड़ डालने वाला एवं शत्रुओं पर कटकटाता हुआ, पर्वतों में खलबली मचाता हुआ समुद्र को चंचल बना देने वाला, तथा सूर्य को भी स्खलित कर देने वाला, एवं घत्ता- रणभूमि में कुमार पार्श्व से जूझता हुआ, दर्पोद्भट उस नराधिप यवनराज के मन में क्रोध-कषाय बढ़कर उसी प्रकार द्विगुणित हो गईं, जिस प्रकार वर्षाकालीन रात्रि में नभस्तल में मेघ-समूह द्विगुणित वेग वाला हो जाता है। (93) पासणाहचरिउ :: 109
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy