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________________ 4/10 Intensity of the fierce fighting described. वइ- विगयंगो वि कोवि कोहाणल जालोलिहि पलित्तओ। पहरंतउ भडाहँ णउ विरमइ वण-रुहिरंबु लित्तओ।। छ।। तहिँ दुद्धर वीर विमुक्करणे विलुलंत वलंत तुरंग धडे विगयंत भिडंत महासुहडो गय-घाय-वियट्टिय हेमरहे रुहिरंबु बहंत सुकंदलए सुरणारि विइण्ण सुमंगलए पररंजिय कूर कियंत मणे पवणाहय धुव्विर चिंधचए णयणेहँ णिहालिविता सबलं जस-पोरिस-माण-सिरी-रहियं परिसज्जिय संदण-हत्थि-हयं रविकित्ति परिंदु गहीरसणो पवरामर-खेयर भीमरणे।। विरसंत वियारिय हत्थि हडे ।। हरिसेण णडंत सुधीर-धडो।। भड हक्क विहीसिय भीम गहे।। लउडोह विहोणिय मंदलए।। विलुलंत भुजोवरि कुंतलए।। रुहिरामिस पोसिय भूअ गणे।। वर चामर-भूसण-छत्त सए।। विवरम्मुहु जंतु सयं समलं ।। घण-घाय-महाभय-संगहियं ।। जउणावणिणाहभडोह हयं ।। सइँ धाविउ वीरु विलास मणो।। 15 घत्ता- म भीसंतउ परियणु सयलु धणु-गुण-बाण-णिवहु संधंतउ।। अइ कोवारुणु लोयण-जुयलु हय-गय-रह-भडाइँ विंधतउ।। 69 ।। ___4/10 युद्ध की तीव्रता का वर्णनद्विपदी-कोई सुभट विकृत अंग तथा व्रण के रुधिर-जल से लिप्त होकर भी क्रोधाग्नि की ज्वालावलि से जलता हुआ, भटों के ऊपर प्रहार करने से विराम नहीं ले रहा था। (युद्ध की भयंकरता से) अनेक दुर्धर वीरों ने भी उस रण-क्षेत्र को छोड़ दिया। वह युद्ध रण-प्रवर अमर, एवं खचरों के लिये भी भयंकर था। उस रण में घोड़ों के धड़ लुंज-पुंज होकर उछल रहे थे। विदारे गये हाथियों के समूह चिंघाड़ते हुए बिगड़ रहे थे। महासुभट विकृत होते हुये भी शत्रुओं से भिड़ रहे थे। सुधीरों के धड हर्ष से नाच रहे थे। स्वर्ण के रथ गदाओं के घात से उलट रहे थे। भटों की हाँक से भीम (भयंकर) ग्रह भी डर रहे थे, उनकी कंदला से रुधिर बह रहा था। लाठियों के समूह ने मंदल (मेरुदण्ड) की नसों के जाल को भी तोड़ दिया था। ऐसी देव नारियाँ, जिनकी भुजा पर केश लटक रहे थे, उस समय सुमंगल गीत गा रही थीं। क्रूर कृतान्त का मन रंजायमान हो रहा था। भूत-गण रुधिर, माँस से पोषित हो रहे थे। अपनी सेना के पवन से आहत बड़ी-बड़ी शुभ्रवर्णवाली ध्वजाओं तथा श्रेष्ठ चामर, आभूषण तथा छत्रों को स्वयं अपने ही नेत्रों से मलिन धूलिसात् होकर विवर-मुखों में जाते हुए देखकर तथा यश, पौरुष, मान एवं श्रीविहीन देखकर कठोर आघातों के महाभय से संत्रस्त तथा यवनराज के भटों द्वारा आहत होने के कारण रथ, हाथी एवं घोडों को छोडकर जब भागने लगे तब वीरता के विलास में मतवाला राजा रविकीर्ति ललकारता हुआ आगे बढ़ा तथाघत्ता- अपने समस्त परिजनों के भय को दूर करता हुआ, धनुष, डोरी, बाण-समूह का सन्धान करता हुआ, अत्यधिक क्रोध से अरुण नेत्र वाला तथा हाथी, घोड़े, रथ एवं भटों को वेधने लगा। (69) 78 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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