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________________ पत्ता- इय वस॒तउ रउ गयणे जण मण असुहावणु अणिवारिउ। अहिमाण कुलक्कम विक्कमेहिँ तो वि वीर पहरंति णिरारिउ।। 66 || 15 4/8 Fierce fighting between the two enemies. दुवइ– केणवि मत्तकुंभ-कुंभत्थलु करवालेण दारिओ। केणवि करु-धरेवि अच्छोडिउ केणवि मोडि मारिओ।। छ।। केणवि कड्ढेवि कोसहो वालो णिग्गउ रत्तपवाहु भरंतो जाय सुणिम्मलदिट्ठि भडाणं तुंग-तुरंगहिँ-तुंग तुरंगा पक्कल वीरहिँ पक्कलवीरा कुंत-करग्गहिँ कुंत-करग्गा चारु रहोहहिँ चारु रहोहा भामिय चक्कहिँ भामिय चक्का आहउ भीम भडोह कवालो।। भूमियलं रयपूर हरंतो।। णिद्दलियारि करिंदघडाणं।। मत्तमयंगहिँ मत्त मयंगा।। भूहर-धीरहिँ मूहर-धीरा।। वग्गिय खग्गहिँ वग्गिय खग्गा।। दुज्जय-जोहहिँ दुज्जय-जोहा।। सम भडा अवरोप्परु थक्का।। 10 घत्ता- समरंगण तूररवेण रणे पेक्खेवि सुहडहिँ सुहड भिडंत। भग्गइँ भय भरियइँ कायरइँ पाणलएवि विरसु रडंत: ।। 67 ।। घत्ता- इस प्रकार गगन-व्यापी वह रज-समूह जन-मन के लिये असुहावना था, फिर भी अनिवारित वह निर्बाध गति से यद्यपि वह गगन में फैलता ही जा रहा था, तो भी वे वीर सुभट निःशंक होकर अपने अभिमान, कुलक्रम और शक्ति-पराक्रम से एक दूसरे पर प्रहार कर रहे थे। (66) 4/8 दोनों शत्रु-सेनाओं में तुमुल-युद्द्विपदी-किसी वीर ने मत्तगजों के कुम्भस्थलों को खड्ग से विदीर्ण कर दिया, तो किसी ने उसकी सैंड को घुमा डाला और किसी ने उन्हें मरोड़कर मार डाला। किसी वीर ने म्यान से तलवार निकाल कर भीमभटों के समूह के कपालों को आहत कर दिया, जिससे रजपूर को हटाता हुआ तथा भूमितल को भरता हुआ वह रक्त प्रवाहित होने लगा। शत्रु की गज-घटाओं को दलित करने वाले भटों की दृष्टि अतिनिर्मल हो गई। उन्नत घोड़ों से उन्नत घोड़े जा भिड़े। मत्त-गजों से मत्त गज, सुभट वीरों से सुभट वीर, धीर-वीर राजाओं से धीर-वीर राजा, हाथ में भाला पकड़ने वालों से हाथ में भाला पकड़ने वाले, उछलती हुई खड्ग वालों से उछलती हुई खड्ग वाले, सुन्दर रथ-समूहों के सम्मुख रथ-समूह वाले, दुर्जेय योद्धाओं से दुर्जेय योद्धा। चक्र घुमानेवालों से चक्र घुमाने वाले, इसी प्रकार समान शस्त्र वाले भट एक-दूसरे से लड़ने-भिड़ने लगे। घत्ता- समरांगण में रण तूर की कर्कश ध्वनि के साथ सुभटों से सुभटों को भिड़ता हुआ देखकर भयभीत हुए कायर लोग अपने प्राण लेकर विरस रटते (रोते-कलपते) चीखें छोड़ते हुए रणभूमि से भाग निकले। (67) 76 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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