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________________ 15 5 तड्ड़ंत वसह लीलइँ भमंति कामणिहि केवि गीयइँ सुणंति इंडरियहँ गंधइँ उच्छलंति सेवय ससामि चरणे णवंति ।। कुसुमेसु सिलीमुह रुणझुणंति । । कंदुव-घरु जाणेवि जण वलंति ।। घत्ता— आवासिउ णिव हयसेणु सुउ णिय-चरमुह-वयणहो जाणेविणु । जउणु वि णिय परियण परियरिउ णियडु समायउ महि लंघेविणु । । 60 || 4/2 After sensing the heavy movement of Prince Pārswa of Vāṇārasī towards the battlefield, the Yavanrāja also prepares to move and confront his powerful enemy (Pārswa). Pārswa meets Ravikīrti. दुवइ एत्थंतरि जिणिंद पासेण पयाण भेरी समाहया । आयवि मुवि मउ वइरिहुँ कडु रडि णिग्गया गया । । छ । । गच्छंतें णिवहिँ सेविज्जमाणु दाहिण - समीर-पेरिज्जमाणु सतणुद्धूलिय कप्पूर रेणु पेक्खंतउ सरि-सर- गोहणाइँ खयारामरेहिँ पेक्खिज्जमाणु ।। परिचलिर चमर सिरि-सोहमाणु ।। वंदियणहँ णियरहिँ थुव्व माणु ।। णंदणवणाइँ मणमोहणाइँ ।। लीलाएँ (मटरगस्ती करते हुए इधर-उधर घूम रहे थे, तो सेवकगण अपने-अपने स्वामियों के चरणों में नमस्कार कर रहे थे। कोई-कोई कामिनियाँ लोकगीत गा रहीं थी, भ्रमर-समूह पुष्पों पर रुणझुण रुणझुण का गुंजार कर रहे थे। किसी दिशा से इंदरसों (अथवा जलेबियों) की ताजी ताजी गन्ध उछल-कूद कर रही थी, अतः लोग हलवाई का घर मानकर उधर की ओर दौड़े जा रहे थे । पत्ता- "हयसेन के सुपुत्र पार्श्व ने (गंगा तीर पर) पड़ाव डाला है" ऐसा अपने गुप्तचर के मुख से वृत्तान्त सुनकर और पूर्ण जानकारी लेकर वह यवनराज भी अपने सुभटों परिजनों से युक्त होकर धरती को लांघता हुआ रणभूमि के समीप आ गया । (60) 4/2 पार्श्व का रण प्रयाण सुनकर यवनराज भी युद्ध भूमि के लिये प्रस्थान करता है। पार्श्व की रविकीर्ति से भेंट द्विपदी — तत्पश्चात् जिनेन्द्र पार्श्व ने प्रयाण - भेरी बजवा दी, जिसे सुनकर बैरी यवनराज के चिंघाड़ते हुए तथा मदजल की वर्षा करते हुए हाथियों सहित उसका कटक रण हेतु निकल पड़ा। साथ में चलते हुए राजाओं द्वारा सेवित, खेचरों तथा अमरों द्वारा दर्शित, मलयानिल द्वारा प्रेरित, मस्तक पर दुराये गये चामरों की शोभा से शोभित, अपने शरीर से कर्पूर के समान सुगन्धित धूलिरज को उड़ाते हुए, बन्दीजनों द्वारा स्तुत, सरोवरों एवं नदियों के किनारे (चरते हुए स्वस्थ - ) गोधन को देखते हुए, मनमोहक नन्दनवन, समस्त ग्रामग्रामान्तरों तथा धान्यकणों से पूरित विस्तृत खेतों को लाँघते हुए पार्श्वकुमार वहाँ पहुँचे, जहाँ राजा रविकीर्ति निवास कर रहे थे (डेरा डाले हुए थे) । पासणाहचरिउ :: 69
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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