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________________ पार्श्व के वैराग्य का कारण बुध श्रीधर ने कमठ नामक तापस के साथ हुई घटना तथा सर्प की मृत्यु को पार्श्व की वैराग्य-भावना का कारण बताया है। उत्तर-पुराण में उक्त घटना का वर्णन तो किया गया, पर उसमें उसे पार्श्व की वैराग्य-भावना का कारण नहीं माना गया। इसी प्रकार महाकवि पुष्पदन्त तथा वादिराज ने कमठ के साथ हुई घटना का वर्णन तो किया, परन्तु उन्होंने भी सर्प की मृत्यु को पार्श्व की वैराग्य-भावना का कारण नहीं माना। पुष्पदंत ने पार्श्व की वैराग्य-भावना क जो गुणभद्र कृत उत्तर-पुराण में दिया गया है, पर वादिराज ने उस भावना का कोई कारण नहीं दिया। उन्होंने पार्श्व की सांसारिक भोग-विलासों के प्रति स्वाभाविक रूप से विरक्त-प्रवृत्ति कहकर उन्हें दीक्षा की ओर उन्मुख बतलाया है। विरोधी कमठ या कमढ आचार्य देवभद्रसूरि ने अपने सिरिपासनाहचरियं में कमठ को कमढ कहा है। उन्होंने उसकी (कमढ की) घटना का चित्रण तो किया किन्तु यह नहीं बताया कि उसके कारण पार्श्व को वैराग्य हुआ। उनके कथनानुसार पार्श्व ने वसन्तऋतु में एक बगीचे में जाकर नेमिनाथ के भित्तिचित्रों को देखा और उन्हीं से उन्हें वैराग्य हो गया। आचार्य हेमचन्द्र कृत त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित में कमठ की घटना का वर्णन कर पार्श्व में उसी के कारण वैराग्य की उत्पत्ति बताई गई है। आचार्य भावदेवसूरि तथा हेमाविजयगणि ने अपने ग्रन्थों में देवभद्रसूरि के उक्त कथन का अनुकरण किया है। पार्श्व की दीक्षा का काल बुध श्रीधर के अनुसार पार्श्व ने पौष कृष्ण एकादशी के दिन दीक्षा धारण की' | कल्पसूत्र के अनुसार पार्श्व ने 30 वर्ष की आयु पूरी होने पर पौष कृष्णा एकादशी को आश्रमपद नामक उद्यान में दीक्षा ग्रहण की थी। समवायांग तथा कल्पसूत्र' के उल्लेखानुसार वे विशाला नामकी शिबिका में विराजमान होकर नगर के बहिर्भाग में पधारे थे। दीक्षाग्रहण करने पश्चात् महाकवि बुध श्रीधर ने पार्श्व द्वारा अष्टमभक्त ग्रहण करने का उल्लेख किया है। आवश्यक नियुक्तिकार तथा आचार्य पुष्पदन्त ने भी इसी तथ्य को सूचित किया है, जबकि तिलोयपण्णत्ती एवं कल्पसूत्र में पार्श्वद्वारा षष्ठभक्त ग्रहण किये जाने का उल्लेख मिलता है। तपस्याकाल में पार्श्व मुनि पर किये गये भीषण उपसर्ग महाकवि बुध श्रीधर ने दीक्षोपरान्त पार्श्व प्रभु के ध्यान-मग्न हो जाने पर असुर-देवयोनि में उत्पन्न कमठ द्वारा उन्हें ध्यान से विचलित करने के लिए किए गए विविध उपसर्गों का रोमांचकारी वर्णन किया है। कल्पसूत्र में ऐसा कोई उल्लेख नहीं आया है कि पार्श्व को ध्यान से विचलित करने के लिए किसी ने उपसर्ग किया हो। किन्तु दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों ही परम्पराओं में पार्श्व के ध्यान में विघ्न डाले जाने का वर्णन कवियों द्वारा अवश्य किया गया है। यद्यपि इन वर्णनों में विघ्न डालने वाले के नाम में मतभेद है। उत्तरपुराण (गुणभद्र) तिसट्ठि. (पुष्पदन्त) तथा लं पं0 0 1. पासणाह. 6/9-10 2. पासणाह. (मोदी) भूमिका पृ. 39 3. त्रिषष्ठि. 9/3/215 4. पासणाह. 6/12 कल्पसूत्र 157 6. समवायंग 250 7. कल्पसूत्र 157 8. पासणाह. 6/13/7 पासणाह 7/8-18 तथा 8/1-7 प्रस्तावना :: 13
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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