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________________ हिमयर तारारुइ विहुणंतउ विहडिय चक्कउलइँ मेलंतउ सुरदिसि-कामिणि मुहु मंडंतउ कुमुअवणहो संकोउ करंतउ दीवावलि पंडुर विरयंतउ तिव्व-पयाव रमालिंगंतउ सुत्त सउणिउल कुरुकुरुलावंतउ जोत्तिय तुंग-तुरय-रहि जंतउ पेम्म मिलिय मिहुणइँ तासंतउँ सयल पयत्थइँ संदरिसंतउ घूएयर खयरवयरइँ हरिसंतउ णिसि णिसियरि चरियइँ णिहणंतउ।। णहयले सेज्जायले लोलंतउ।। कामिय माणुण्णइँ खंडंतउ।। णियकर-णियरहिँ भुअणु भरंतउ।। अइरत्तत्तणु तणुहिँ चयंतउ।। तम-परिहविय णलिणि मग्गंतउ।। कम्मंतरे कम्मयर-ठवंतउ।। जगभवणहो दीउव छज्जंत।। होम-दाण-कम्मइँ भासंतउ।। फुरिय किरणमालए विलसंतउ।। णिसियर संचरणाइँ णिरसंतउ।। 10 घत्ता- कामंतउ पच्छिमदिसि तरुणि सोसंतउ सरिसरणय। वोहंतु सकिरणहिँ णट्टलु व सयण सिरिहरायर सयइँ।। 59 ।। विधुनित करने वाले, रात्रि में निशाचरों (चोरों एवं राक्षसों) की क्रियाओं का अवरोध करने वाले, विघटित (वियोगी) चकवा-चकवी का सम्मिलन कराने वाले, नभस्तल रूपी शैयातल में क्रीड़ाएँ करते हुए, पूर्व-दिशा रूपी कामिनी के मुख को मण्डित करते हुए, कामीजनों की मानोन्नति को खण्डित करते हुए, कुमुद-वनों को संकुचित करते हुए, अपनी किरण-समूह से भुवन को भरते हुए, दीप-मालिकाओं को निष्प्रभ करते हुए, अपने तनु-मण्डल से अतिशय लालिमा को बिखेरते हुए, अपने तीव्र प्रताप से लक्ष्मी का आलिंगन करते हुए, अन्धकार से पराभूत नलिनी (कमलिनी) की खोज करते हुए, सोते हुए पक्षियों से कुर-कुर का रव (मधुर-शब्द) कराते हुए, कर्मकरों को अपने-अपने कर्तव्य-कार्यों में व्यस्त होने की प्रेरणा देते हुए, जोते हुए उन्नत घोड़ों वाले रथ पर चलते हुए, जग रूपी भवन को अपनी प्रकाशज्योति से प्रकाशित करते हुए, प्रेम से मिले हुए प्रेमी-प्रेमिकाओं के युगल को डाँटते हुए, (अर्थात् सुप्रभात हो जाने की सचना देते हए) होम-दान-कर्मादि करने की प्रेरणा देते हए, समस्त पदार्थों को स्पष्ट दिखलाते हए, अपनी स्फुरायमान किरणमालाओं से विलसित होते हुए, उल्लुओं (घुयए) के शत्रु-पक्षियों को हर्षित करते हुए और निशाचरों के संचरण का निरसन करते हए घत्ता- पश्चिम दिशा रूपी तरुणी की कामनाओं का अन्त करते हुए, नदियों एवं सरोवरों के जल का शोषण करते हुए और अपनी किरणों के द्वारा सपरिजन साहू नट्टल तथा श्रीधर कवि को प्रबोधित करते हुए सूर्य का पूर्व-दिशा में उदय हुआ। (59) 66 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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