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________________ ता बंधेविणु जउणु णराहिउ रविकित्तिहिँ पय-पुरउ ठवेज्जहिँ एम भणेप्पिणु जा हयसेणें पविसज्जिउ तेवीसमु जिणवरु ता णिग्गउ तित्थयरु तुरंतउ पविराइउ तिसयावणि-णाहहिँ एक्कवीस सहसहिँ मायंगहिँ चउसट्ठिहिँ सहसेहिँ तुरंगहिँ इय चउविह साहण संजुत्तहो देवघोसे रहवरे आरूढउ गंभीरारव तूर णिण जो केणवि रिउणा ण विराहिउ।। अवियलु वि रविहिँ रज्जु देज्जहिँ।। णिय णिम्मलकुल-वासर सेणे।। चरणंभोरुह णाविय सुरवरु।। धण-धारहिँ वंदियणु भरंतउ।। रूव-परज्जिय मणरुह राहहिं।। तेत्तिएहिँ रहवरहिँ अहंगहिँ।। बेलक्खहिँ सुहडहिँ पोढंगहिँ।। गच्छंतहो हयसेणहो पुत्तहो।। सयलामल सिरि तिलयहो रूढउ।। विहिय तिविह भुवणयल विम।। घत्ता- वामंगए वाएं वि खरु रडइ भणइ व कुसल जिणेसरहो। तत्थवि सिव-सिव कारणि लवइ पासाह परमेसरहो।। 55।। 3/17 Auspicious signs appeared again and again in the way. In the evening he takes rest with his army near a pond. The charming description of the evening. खीर-महीरुहि वायसु वासइ णावइ पासहो खेम पयासइ।। को भी भर देने वाले हे सुन्दर बालक, यदि तूं रोके जाने पर भी रुकने को तैयार नहीं, तो (ऐसा कर कि) जो यवनराज अभी तक किसी भी शत्रु द्वारा विराधित (विजित) नहीं हुआ है, उसे बाँधकर राजा रविकीर्ति के पैरों में डाल दे और रविकीर्ति के राज्य को अचल बनाकर उसे सौंप दे। यह कहकर अपने निर्मल कुल के लिये सूर्य के समान राजा हयसेन ने देवों द्वारा नमस्कृत-चरण वाले तेवीसवें जिनवर पार्श्व को विदा दे दी। ___बन्दीजनों के लिये प्रचुर धन-दान से सन्तुष्ट करते हुए देवों के नाथ पार्श्व-जिन तत्काल ही (वाणारसी-नगरी से) युद्ध हेतु निकलने की तैयारी करने लगे। अपने सौन्दर्य से कामदेव को भी पराजित कर देने व से सुशोभित, 21000 मातंग, उतने ही अभंग-रथ-समूह, 64000 तुरंग और 200000 प्रौढ़ अंगवाले सुभट उनके साथ तैयार हुए। इस प्रकार चतुर्विध साधनों (चतुरंगिणी-सेना) के साथ राजा हयसेन का वह (पराक्रमी) पुत्र रण-प्रयाण के लिये स्वयं भी सजने लगा। सभी के साथ उसका निर्मल तिलक किया गया और वह देवघोष नामक रथ पर आरुढ़ हुआ। उसी समय तीनों लोकों में उथल-पुथल मचा देने वाले तूर का गम्भीर निनाद हो उठा। घत्ता- तभी वाम पार्श्व में गधा ऐसे रेंकने लगा, मानों वह पार्श्व जिनेन्द्र के विजय के साथ सकशल लौट आने की सूचना ही दे रहा हो और वहीं (बाईं ओर) पार्श्व परमेश्वर के लिये शिवा (शृगाली) भी शिव-शिव बोलने लगी। (55) 3/17 रण-प्रयाण के समय पार्व के मार्ग में अनेक शुभ-शकुन। एक सरोवर के किनारे उनका ससैन्य विश्रामः मनोहारी सन्ध्या-वर्णनश्रीपार्श्व के रण-प्रयाण के समय ही क्षीर-वृक्ष पर बैठा हुआ कौवा ऐसे बोल रहा था, मानों वह उनकी कुशलक्षेम ही प्रकाशित कर रहा हो। मत्तगजों के गण्डस्थलों से मदजल इतना प्रवाहित हो रहा था कि जिसने समस्त 62 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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