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________________ 5 10 वाणारसिपुर णाहो पुत् अमरकुमारहिँ सहुँ सिरि-जुत्तउ ताय-ताय किं कोवि णिरंतरे पोणे पसारइ गुणमणि सायरु किं मंथरगइ मेल्लिवि सिंघरु अप्पर कोवि समेण विहट्टइ किं घरित्थिए भोयणे अमिओ मि किं अच्छंतिएण सुह सलिलेँ किं खयरामरणयणाणंदणु मेल्लिवियाणल-जालहिँ पीयलु किं कोमले णिम्मले थिणिवसणे सुरसीमंतिणि रंजण-धुत्तें । । सजणु पास-जिणिंदें वुत्तउ ।। अलसि कुसुम मसि सम तिमिरंतरे ।। होतएण दीवेण जसायरु ।। कच्छरिच्छ-माला सिरि बंधुरु ।। बुद्धि- समद्धि पहिँ पयट्टइ ।। कोवि भिक्ख- परिभमइ मणोरमि ।। कोवि पियइ कद्दमु हय कलिलें । । फल सिलिंध समिद्धउ णंदणु ।। सेवइ कोवि मसाण महीयलु || परिहइ कोवि सुथूल सुहि जणे ।। घत्ता- किं मइ सुएण अच्छंतएण तुह जुत्तउ संगरु हवइ । तं सुणिवि पासणाहहो वयणु वम्मुदेवि - पिययमु चवइ ।। 52 ।। 3/14 Replies and Counter replies between King-father and his dear son (Prince Pārswa) over the matter of challenging fight with the arrogant enemy - Yavanraja. सच्च वयणु पुत्त पइँ वुत्तउ जं तं मण्णमि हउँमि णिरुत्तउ || हयसेन का सुरदेवियों के रंजन में कुशल, श्रीसमृद्ध जिनेन्द्र पार्श्व ने अमरकुमारों के साथ अपने पिता के पास जाकर कहा हे तात, हे तात, ऐसा कौन यशस्वी एवं गुणरूपी मणियों का सागर होगा, जो दीपक के होते हुए भी सघन अलसी के कृष्ण- पुष्प अथवा स्याही के समान कृष्ण वर्ण वाले अन्धकार के मध्य अपने पैर पसारेगा? नक्षत्र - माला की श्रीशोभा के समान सुन्दर एवं मन्थर गति वाले गजों के होते हुए भी क्या कोई बुद्धि-सम्पन्न व्यक्ति उन पर आरूढ़ होकर अपने श्रम ( थकावट ) को न बचावे और केवल पद-यात्रा ही करता रहे? अपनी गृहिणी के द्वारा अमृतोपम (मनोरम) भोजन को छोड़कर भिक्षावृत्ति के लिये कौन भ्रमण करेगा? निर्मल शुद्ध जल के होते हुए क्या कोई कीचड़ से सना हुआ पानी पियेगा ? विद्याधर, देवगण आदि के नेत्रों के लिये आनन्ददायक फल-फूलों से समृद्ध नन्दनवन को छोड़कर क्या कोई अग्नि की ज्वाला से पीतवर्ण वाली श्मशानभूमि का सेवन करेगा? सुकोमल, निर्मल एवं महीन स्त्री-वस्त्रों के होते हुए भी ऐसा कौन बुद्धिमान होगा जो स्थूल (मोटे) वस्त्र पहिनेगा? घत्ता- मुझ जैसे पुत्र के होने पर भी क्या आपका युद्ध में जाना युक्तियुक्त है ? पार्श्वनाथ के इन वचनों को सुनकर वामादेवी के पति राजा - हयसेन बोले- ( 52 ) 3/14 यवनराज के साथ युद्ध में भिड़ने सम्बन्धी पिता-पुत्र के उत्तर- प्रत्युत्तर— (राजा हयसेन ने कहा-) हे पुत्र, तुमने जो कुछ कहा है, वह सत्य है, मैं उसे बिल्कुल उचित मानता हूँ । परन्तु पासणाहचरिउ :: 59
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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