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________________ तुह वच्छत्थलु सेविउ लच्छिए परिभमंति पुण्णालि व महियले कस् ण कंठ फंसिउ असि-लदिए मई पुणु माणिउ सव्वंगेण जि जइ मण्णहि मह रइ-गुणु सामिय ता णहयले संठिय सुरपतिहु मा-मा मण्णेज्जसु भासइ कंत-कंत कायरइँ मुएविणु हरिणारिव ओरालि करेविण राहु व रूसेज्जहि रविचंदहँ इयरह णिम्मल-कित्ति ण लब्मइ भुव-जुउ परिभुत्तउ जयलच्छिए।। थत्ति ण बंधइ कित्ति व णहयले।। पर-णरवर वच्छत्थलु मुट्ठिए।। बार-बार पिय जंपमि तेण जि।। समरंगणि पवरच्छर-कामिय।। एक्कमेक्क वर वीरवरतिहु ।। कावि णारि णियहियउ पयासइ।। वाणासणे वाणावलि देविणु।। दूसासणु वसुभिउडि धरेविणु।। गुणगरुअहँ जसवल्लरि कंदहँ।। जाबहु जंपण माणु णिसुभइ।। घत्ता- ता रायहो वयणे किंकरहिँ रणतूराइँ समाहयइँ। बहिरंत तिविह भुवणोवरइँ पडिरडियइँ आसागयइँ ।। 50 ।। 3/12 King Hayasen makes up his mind to command and start with his four types trained and experienced army towards the challenging battle-field. तहिँ अवसरि सेण्णइँ संचलियइँ णं जम-काल-कियंतहँ मिलियइँ।। लक्ष्मी द्वारा सेवित है और भुजा-युगल जयलक्ष्मी द्वारा परिभुक्त। आपकी कीर्ति पुंश्चली के समान महीतल में घूमती रहती है और वह नभस्तल में भी अपनी स्थिति को नहीं बाँधती। आपकी असि-यष्टि ने किस-किस के कण्ठ का स्पर्श नहीं किया है? किस-किस वीर शत्रु के वक्षस्थल का आपके मक्के ने स्पर्श नहीं किया है? ___ मैंने तो आपको अपने सर्वांगों से आदर दिया है, इसीलिये मैं आपसे बार-बार प्रार्थना कर रही हूँ कि वे स्वामिन, यदि आप मेरे रति-गुण को सम्मान देते हैं, तो समरांगण में श्रेष्ठ अप्सराओं के कामीजनों (शत्रुओं) को नभस्तल में ही संस्थित कर देना, जिससे कि सरपति की देवांगनाएँ एक-एक कर उन वर-वीरों का वरण क कह रही हूँ कि मैं आपके यश को मान्यता नहीं दे सकूँगी। कोई-कोई नारी अपना हृदय खोलकर अपने मनोभावों का प्रकाशन करती हुई कह रही थी कि हे कान्त, हे कान्त, कायरता छोड़कर वाणासन (धनुष) पर वाणावलि चढ़ाकर जिस प्रकार सिंह मृग-पंक्ति को नष्ट करता है, उसी प्रकार तुम भी शत्रु-पंक्ति को निशाना बनाकर दुःशासन के समान तीक्ष्ण भृकुटि तान देना और जिस प्रकार राहु क्रोधित होकर सूर्य एवं चन्द्र को ग्रसित कर लेता है, उसी प्रकार तुम भी गुणों के महान् तथा यश रूपी लतावल्लरी के कन्द समान उन चन्द्रवंशी एवं सूर्यवंशी शत्रुओं पर क्रोधित होकर टूट पड़ना। आप जब तक जल्पवादीवकवादी इन सुभटों का मान-मर्दन नहीं कर डालेंगे, तब तक आपको निर्मल कीर्ति प्राप्त नहीं हो सकेगी। घत्ता- तभी, राजा हयसेन के आदेश से आज्ञाकारी सेवकों ने तीनों लोकों के बाहय तथा आभ्यन्तर को भर देने वाले रण-प्रयाण के सूचक तूरादि बाद्य बजा दिये, जिससे सभी दिशाएँ-विदिशाएँ प्रतिध्वनित हो उठीं। (50) 3/12 राजा हयसेन की वाणारसी से चुनौती भरी रणभूमि की ओर प्रयाण की तैयारीउसी समय सेना ने इस प्रकार प्रयाण किया, मानों वह यमकाल (मरण काल) में कृतान्त से ही मिलने जा रही पासणाहचरिउ :: 57
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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