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________________ मेल्लंते तारामंडलाइँ दिदुइँ रविचंदइ चंचलाइँ।। पुणु दिट्ठ फुरंती रिक्खपंति णहरमणि कंठ-कंठिव सहति।। पुणु बुहु पुणु सुक्कु सुतेय वंति पुणु मंगलु पुणु सणि उग्गमंतु ।। इय उवरि-उवरि पेक्खंतएण बहुविहविणोय दरिसंतएण।। सुद्धउ णहयलु लंघंतएण गुरुविणएँ जिणु हरिसंतएण।। घत्ता-दीसइ पंडुसिल ससि-सरिस किल मह जोयण पण्णास।। दीहत्तणु जाहे अट्ठ जि ताहे पिंडु तिमिर णिण्णास ।। 27 || 2/7 Celebration of birth-bath-festivity (Janmābhiseka). जिणणाहु गंभीर तूराइँ हंतूण।। तहिँ उवरि हरिणारिविट्ठरि पमोत्तूण इंदेण अहिसेउ पारद्धओ जाम देवेहि करकमल परिकलिय कलसेहिं वायंति पाडहिय गिव्वाण वज्जाइँ णाणाविहा खुज्जयादेव णच्चंति मंगलइँ सुरराय सुंदरिउ सइँ देंति मोत्तियमओ मंडओ विहिउ णाएहि विलसंतदेहेहि परिहरिय अलसेहिाँ। गायंति गीयाइँ किण्णर मणोज्जाइँ।। खिब्मिसइँ बावण' करयलइँ कुचंति।। खेयरहँ रमिणिउ चामरइँ लहु लेंति।। अहिणव महामेह संकास काएहि। तारा-मंडल को पीछे छोड़ते हुए उसने, रवि-चन्दों की चंचलता देखी। पुनः उसने चमकती हुई नक्षत्र-पंक्ति को देखा, जो मानों आकाश रूपी पत्नी के कण्ठ के कण्ठहार के समान शोभा को प्राप्त हो रही थी। पुनः उसने तेजवन्त बुध | तथा शुक्र को पार किया, तत्पश्चात् उसने तेजवन्त मंगल को पार किया और उद्गम (उदय) होते हुए शनि को देखा। ऐसा ऊपर-ऊपर देखते हुए अनेक प्रकार के विनोदों से दर्शन करते हुए, पुनः शुद्ध आकाश को लाँघते हुए, बड़ी ही विनय के साथ जिनेन्द्र को हर्षित करता हुआ वह इन्द्र सुमेरु पर्वत पर जा पहुंचा। घत्ता- वहाँ उसने उस पाण्डुक-शिला को देखा, जो अर्ध चन्द्र के समान कला वाली एवं पचास महायोजन __ विस्तार वाली थी। उसकी दीर्घता (लम्बाई) आठ योजन की थी और वह तिमिर-पिण्ड का नाश करने वाली थी। (27) 2/7 शिशु-जिनेन्द्र का जन्माभिषेक-उत्सवइन्द्र ने जिनेन्द्र को उस पाण्डुक-शिला के सिंहासन पर बैठाया। तत्पश्चात् उनके सामने गम्भीर बाजे बजाए। इन्द्र ने अभिषेक प्रारम्भ करने से पूर्व सुमेरु पर्वत से लेकर क्षीर-सागर तक देवों की एक लम्बी पंक्ति बनाई। चमकती हुई देह के धारी और आलस्य के त्यागी उन देवों के कर-कमलों द्वारा (क्षीरसागर से) कलश लाये गये। देवों द्वारा बजाये जाने वाले दिव्य-वाद्य बजने लगे। किन्नर मनोज्ञ गीत गाने लगे। कुब्जक देव नाना प्रकार के नृत्य करने लगे। किल्विष देव एवं वामन-देव करतल बजाने लगे। इन्द्र की सुन्दर अप्सराएँ मंगल-गीत गाने लगीं। खेचर रमणीक चमर दुराने लगे। नवीन सघन-मेघों के समान देह वाले नागदेवों ने अपने संपूर्ण क्रूर-कर्मों को छोड़कर जिननाथ से धर्म की 32 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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