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________________ चिकनी-चौड़ी सड़कें, अनुशासित नर-नारियाँ, विधि-व्यवस्था आदि चित्ताकर्षक हैं । इन सभी से वह इतना प्रभावित हो उठता है कि वह बाद में वहीं (दिल्ली) का निवासी बन जाता है। प्राच्य विद्याजगत् डॉ. राजाराम जैन का अत्यन्त ऋणी रहेगा, जिन्होंने बुध श्रीधर के विशिष्ट कोटि के प्रस्तुत महाकाव्य——पासणाहचरिउ' का सम्पादन एवं बहुआयामी मूल्यांकन कर उसे सार्वजनीन किया । इस तरह उन्होंने इस महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक महाकाव्य को काल - कवलित होने से बचा लिया है। प्राचीन पाण्डुलिपियों की खोज तथा उनका सम्पादन, अनुवाद एवं बहुआयामी मूल्यांकन अत्यन्त ही श्रमसाध्य, धैर्यसाध्य, समयसाध्य एवं व्ययसाध्य कार्य है किन्तु संकल्प के दृढव्रती डॉ. जैन के साधनापूर्ण तपस्वी जीवन ने उन चुनौतियों को भी सहर्ष स्वीकार किया है। इसके फलस्वरूप पिछले लगभग 5 दशकों में इस क्षेत्र में उनके जो अविस्मरणीय अवदान हैं, पाण्डुलिपि - सम्पादन- जगत् उनकी कभी भी उपेक्षा नहीं कर सकेगा। मैं डॉ. राजाराम जैन के यशस्वी दीर्घ जीवन के प्रति मंगल कामना करता हूँ । (8) डॉ. कमलचन्द सोगाणी निदेशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर (राजस्थान)
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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