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________________ 49 अथ श्री संघपट्टकः ANNNN .. नावार्थ:-जाग्यशाळी जनोने ज विधिनो योग मळे ने माटे विधिपदना सेवनारने हमेशां धन्यवाद देवो घटेले. तेमज विधिने बहुमान देनार तथा बेवटे विधिपदने दोष नहि देनारने पण धन्यवाद देवो घटित . था कारणथी आज काळमां पण फरीने प्रमादरुप अंधकारनुं जोर वध्युं ने एटले तेमां प्रकाश श्रापनार संघपट्टक, संदेहदो'लावळी, तथा षष्टिशतक जेवा ग्रंथोनी टीकाओनां गुजराती भाषांतरो बाहेर पानी लोकोने फरीने जागृतिमां लाववानी जरूर उनी थई बे. ते जरुरने पूरी पामवा थोमा वर्षपर विधिमार्गना पक्षनी हिमायतमां तत्पर थएला अने सत्यप्ररुपकरुप पदने धारण करनार मुनिराजश्री बुटेरावजी महाराजना परमजक्त श्रीयुत शांतिसागरजी महाराजे पोताना फूरसदना वखतमां संघपट्टकनी टीकार्नु लाषांतर तैयार कर्यु हतुं. तेज नाषांतर हाल अमे मूल पाठ साथे कायम राखीने जेम रचेढुं तेम पाव्युं . श्रा नाषांतरनी जाषा हालनो नाषा पहतिने बंधबेस्ती थाय तेवी नथी तेमज तेमां प्रमाण तरीके अपायला पाउनो पण घणा स्थळे संपूर्ण अर्थ आपवामां नथी श्राव्यो तथा बीजी पण केटलीक खामी हशे ज केमके तेमनो ए प्रथम प्रयास ज हतो, बतां तेमनी कृतिमां तेममा हृदयनी केवी सरळता अने उच्चता हती ते जेवी स्पष्ट जणाय देवी जाषांतर फेरवी नाख्याथी नहि जणाय ए कारपने अनुसरी श्रमे तेमां कंश फेरफार नहि करतां हाल, जेम तुं
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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