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________________ ६२६ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज ३५८, त्रिषष्टिशलाकापुरुष स्वर्ग के इन्द्र ३४८, स्वर्ग में ३५८, ३५६ विहार-क्रीड़ा ३५३, ३५५, जैन शिक्षणविधि ४०८ प्रामोद-प्रमोद ३५१, ३५५, जैन शिक्षा परम्परा ४०८, ४०६, स्वर्गस्थ देव-देवियों की शृङ्गार४२२-४२५ लीलाएं ३५५ - जन शिलालेख १३५ - जैन षोडश स्वप्न ४५४, ४५५ जैन संघ व्यवस्था ३२६, ३३३, ४६२ जैनाचार्य ४०३-४०५ ४६३ ज्वलनशील प्रायुध १८२ जैन संस्कृति १२, १४, २६, २७, ज्ञानलक्षण ४०० २८, ३५, ३६, ४०, ४६, ६४, ज्ञान-विज्ञान ४०७ ६६, ३१५, ३२१ . ज्ञानशून्य (जीव) ३६७ जैन समाज ३३८, ३४०, ३४८, ज्ञानार्जन का ढोंग ४१६ ३५०, ३६६ ज्ञानावरण ३६० जैन साध्वियों की तपश्चर्या ३६६. ज्ञानावरणी कर्म ३८६ ज्ञानोपयोग ३८४, ३८६ जैन साध्वियों की शिक्षा ४२० झुग्गी-झोपड़ियां २४७ जैन साध्वी ३६७, ३६७ झूठे मापतौल २३१ इनकी संघव्यवस्था, ३६६, टाउन २६४, इनकी शिक्षा-दीक्षा ३६६ टाउन काउंसिल २७३, २७४ इनके व्रत-उपवास ३६७, इनकी टाउन कॉरपोरेशन २७४ तपश्चर्या ३७६ टाउन हॉल २७४ राजपरिवार की रानियों द्वारा ट्रेड रूट २८७, २९१ दीक्षा ३६७ ट्रेडसं कॉरपोरेशन २६४ जैन साध्वी वर्ग ४६३ ट्रेडर्स बॉडी २६४ जैन साहित्य २६६ टोल (चुंगी), २६१ जैन स्वर्ग (देवलोक) ३२५, ३४८, ठाकुर १३४ ३५१-३५३ डलिया बनाना (व्यवसाय) २३३पा० स्वर्ग/देवलोक की प्राप्ति ३२५, डाका डालना (व्यवसाय) १०३, ३५२, स्वर्ग दश प्रकार के १०४, २३८ ३५१, स्वर्ग सुख ३५३, ३५५, डिटेरेंट थियरी १०१ स्वर्गस्थ देव ३५३, ३५५, डिवाइन थियरी १०१ स्वर्गस्थ देवांगनाएं ३५३, ३५५, णगर २८० ३ .
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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