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________________ ४४६ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज है। धार्मिक महोत्सवों तथा मनोरञ्जनार्थ प्रायोजित सङ्गीत-गोष्ठियों में नृत्यप्रदर्शन का विशेष प्रचलन रहा था ।' नृत्य के अवसर पर नर्तकी द्वारा कटाक्षादि चेष्टाएं एवं वस्त्रापनयपूर्वक अंग प्रदर्शन आदि का भी अभिनय किया जाता था। स्तन-मण्डल पर पटह धारण कर नृत्य करना, भौहों को चलाना, नेत्रों को विलासपूर्ण बनाना, स्तनों को कम्पित करना, हाथों को उठाना, सुन्दर चरण विन्यास, आदि नत्य की विशेष मुद्राएं प्रचलित थीं।3 यशस्कीति कृत सन्देहध्वान्त टीका के अनुसार भ्रूभङ्गनृत्य सात प्रकार का, नेत्र-पक्ष नृत्य छब्बीस प्रकार का, नासिका अधर तथा कपोल नृत्य छह-छह प्रकार का शिर-नृत्य तेरह प्रकार का, ग्रीवा-नृत्य नौ प्रकार का, उरु-नृत्य पांच प्रकार का, पार्श्व तथा उदर-नृत्य तीन प्रकार का; हस्त-नृत्य चौसठ प्रकार का, बाहु-नृत्य दश प्रकार का; कराभिनय पूर्ण नृत्य बीस प्रकार का, कटि-नृत्य पांच प्रकार का; पाद-नृत्य छह प्रकार का तथा पद-विन्यासपरक नृत्य बत्तीस प्रकार का होता था। हम्मीर महाकाव्य में लास्य, १. स्तोत्रनृत्यप्रगीतैरुरुजयनिनदैवंशवीणामृदङगैः । –प्रद्यु०, १४.४७ गन्धर्व-गीत-श्रुति-ताल-वंशमृदङ्ग-वीणापणवादिमिश्रः । लास्य-प्रयोगेष्वथ ताण्डवेषु स्वायोज्य-चित्रं ननृतुस्तरुण्यः ।। -वराङ्ग०, २३.१० २. वस्त्राण्युत्संवृणोति स्म प्रक्नूय न भयान्न कः । -हम्मीर १३.२, मृगनाभिस्फुरन्नाभि यदङ्गणमराजत। -वही, १३.८ .. मिथोऽपि स्पर्धया वर्धमानत्वादिव संयते । दृढं चोलान्तरीयाभ्यां स्तनश्रोणी प्रबिभ्रति ।। वपूर्वल्लिविलासेन मूर्च्छयन्तीव कामिनः । -वही, १३.१५,१६ ३. एकया गुरुकलत्रमण्डले घृष्टकामुक इवाधिरोपितः । वल्गितभ्रूनवविभ्रमेक्षणं वेपितस्तनमुदस्तहस्तकम् । चारचित्रपदचारमेकया नर्तिस्मरमनत्ति तत्पुरः ।। -धर्म०, ५.५४-५५ सप्तप्रकारनर्तितभ्रूलतं, षडविंशतिप्रकारचालितलोचनं, नवविनतितकानीनिकं, षट्प्रकाराधरं, षट्प्रकारनासिकं, षट्प्रकाराधर, षट्प्रकारकपोलं, सप्तप्रकारचिबुकं, नवप्रकारलोचनपक्ष्मपुटं, तथा त्रयोदशविघं शिरोनत्यं, पश्चात् पूर्वोक्तानि तथा मुखच्छायाशृङ्गाररौद्रात्मभेदेन चतुर्धा तथा रङ्गमध्येऽष्टी वीक्षणगुणा, नवप्रकारं ग्रीवानृत्यं...तथा पार्श्वनृत्यं च तथोदरं त्रिविधं चतुःषष्टिप्रकारं हस्तकनृत्यं तथा बाहुनत्यं दशविधं तथा करकर्माणि विशतिः, कटीनत्यं पंचविधं तथा पंचविधाजङ्घा तथा पादकर्म षड्विधं तथा द्वात्रिंशत्पादचारिकाः ।। -धर्म०, ५.५५ पर यशस्कीतिकृत टीका, पृ०८७
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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