SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 472
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३८ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज महत्त्वपूर्ण अवसरों' पर तथा सङ्गीत गोष्ठियों में सङ्गीत कला का शास्त्रीय रूप भी विशद हुआ है । सङ्गीत विशारद विशेष उत्सवों में अपनी कला का प्रदर्शन करते थं । इसके अतिरिक्त राज्य के दैनिक क्रियाकलापों में भी सङ्गीत का विशेष स्थान था । सङ्गीत के विविध वाद्य यंत्रों में तूर्य ( तुरही) पटह (नगाड़ा) आदि वाद्ययंत्र विविध राजकीय गतिविधियों की सूचना देने के महत्त्वपूर्ण साधन थे । हम्मीर महाकाव्य में उल्लेख प्राया है कि मृदङ्ग आदि से बन्दीगण प्रातः काल होने की सूचना देते थे । चन्द्रप्रभचरित के अनुसार राजा के प्रस्थान की सूचना देने वाले मृदङ्ग आदि वाद्य यंत्रों से नगर वासियों को सचेत किया जाता था । पटह श्रादि वाद्य यन्त्रों से युद्ध प्रयाण की सूचना दी जाती थी । देव मन्दिरों में पूजा के अवसर पर भी सङ्गीत एवं नृत्य प्रयोग द्वारा आराध्य देव को प्रसन्न करने की विशेष प्रवृत्ति रही थी । सङ्गीत गोष्ठी प्रादि क्रिया-कलापों का सम्बन्ध विशुद्ध रूप से मनोरंजन से जुड़ा हुआ था । हम्मीरमहाकाव्य में इस प्रकार की सङ्गीत गोष्ठी के आयोजन का उल्लेख श्राया है जिसका उद्देश्य सैनिकों का मनोरंजन करना था । ७ वाद्य यंत्र विभिन्न धार्मिक महोत्सवों, ररण प्रयाणों, सङ्गीत-गोष्ठियों आदि भवसरों पर विविध प्रकार के वाद्य यंत्रों का प्रायः प्रयोग होता था जिनमें मृदङ्ग, वीणा, वेणु, पटह, भेरी, वल्लकी, तुर्य आदि वाद्ययंत्र विशेष रूप से लोकप्रिय थे । जैन संस्कृत महाकाव्यों में निम्नलिखिम वाद्य यन्त्रों का उल्लेख आया है १. महोत्सववाद्यमिव । नरनारा०, ५.४६, तथा तु० - वरवंशमृदङ्गगीतशब्दान् मुरजध्वनिविमिश्रितान्स रागान् । —वराङ्ग०, २. गीत दङ्गध्वनिवेणुवल्लकीनादानुगं मद्यतु मेदिनीपते । - पद्मा०, ३.१३३ ३. गन्धर्वगीतश्रुतितालवंशमृदङ्गवीणापणवादिमिश्रः । — बराङ्ग०, २३.१० ४. मार्दङ्गिकैस्तावदवादि सद्यः प्रत्यूषसूचा सुभगो मृदङ्गः । - हम्मीर०, ८.७ ६.४४ प्रबोधसमये तवोल्लसितकालमार्दङ्गिकाङ्कितः । - वसन्त०, २४.५ ५. द्रष्टव्य प्रस्तुत ग्रन्थ, पृ० १५७ ६. वही, पृ० ३३९ ७. नेमिचन्द्र शास्त्री, आदि पुराण में प्रतिपादित भारत, पृ० २५०
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy