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________________ धार्मिक जन-जीवन एवं दार्शनिक मान्यताएं ३८५ व्यय एवं प्रोव्य युक्त हो वह 'जीव' है ।" इस सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि जीव के 'चेतनालक्षणो जीवः' तथा 'उपयोगलक्षणो जीवः' युक्ति संगत लक्षण हैं जो संसारी तथा सिद्ध दोनों प्रकार के जीवों में घटित होते हैं परन्तु व्युत्पत्ति के आधार पर जो जीता है, प्राण धारण करता है - यह जीव का जो अर्थ किया जाता है वह केवल संसारी जीवों में ही चरितार्थ होता है सिद्ध जीवों में नहीं । २ 'सिद्ध' और संसारी' भेद से जीव दो प्रकार का है । संसारी जीव के चार भेद संभव हैं१. नारकी, २ तिर्यञ्च, ३. मनुष्य तथा ४ देव । 3 नारकी जीव सात पृथिवियों की अपेक्षा से सात प्रकार का होता है । १. रत्नप्रभा २ शर्कराप्रभा ३. वालुकाप्रभा ४. पंकप्रभा ५ घूमप्रभा ६ तमः प्रभा तथा ७ महातमः प्रभा - ये नरक की सप्त भूमियाँ हैं । मुख्यतया जीव तत्त्व को 'भव्य', 'भव्य' तथा 'मुक्त' – इन तीन भेदों की दृष्टि से विवेचित किया जाता है जो इस प्रकार हैं (क) श्रभव्य जीव - वीतराग तीर्थङ्कर की दिव्यध्वनि से प्रकाशमान् सत्य के प्रति जो अनास्थावान् हैं, मिथ्या तथा भ्रान्त ज्ञान के ग्राहक और पोषक हैं तथा अनादि काल से लेकर आगामी काल तक जो सदैव संसार - सागर में ही परिभ्रमण करते रहते हैं 'भव्य' जीव कहलाते हैं । ये जीव उस पाषाणखण्ड के समान हैं जो सैकड़ों कल्पों के बीतने पर भी कभी थोड़ा सा भी निर्मल नहीं होते । ६ (ख) भव्य जीव - जिनका संसार भ्रमण अनादि होता है परन्तु शुभावसर के आगमन पर रत्नत्रय के धारण से जिनका आगामी भव समाप्त हो जाता है— भव्य जीव कहलाते हैं । इस प्रकार के जीव उस मलिन धातु के तुल्य हैं जो शुद्धि के १. अमूर्तश्चेतनाचिह्नः कर्ता भोक्ता तनुप्रमः । ऊर्ध्वगामी स्मृतो जीवः स्थित्युत्पत्ति व्ययात्मकः ॥ २. —धर्म०, २१.१० तथा द्रष्टव्य, आचार्य श्री तु० 'जीवति प्राणान् धारयतीति जीवः ।' आत्माराम जी, जैन तत्व कलिका, पंचम कलिका, पृ० ८१ ३. धर्म०, २१.११ ४ वही, २१-१२-१३ ५. ते च जीवास्त्रिधा भिन्ना भव्याभव्याश्च निष्ठिताः । — वराङ्ग० २६७ श्रद्दाना ये धर्मं जनप्रोक्तं कदाचन । अलब्धतत्त्वविज्ञाना मिथ्याज्ञानपरायणाः । - वही, २६.७ अनाद्यनिधनाः सर्वे मग्नाः संसारसागरे । अभव्यास्ते विनिर्दिष्टा अन्धपाषाणसंनिभाः ।। - वही, २६.६
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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