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________________ २६० जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज 'खेट' के तुल्य बना हुआ है, यद्यपि गन्ना, धान आदि के उत्पादन होने से यह अन्य साधारण गांवों की तुलना में समृद्ध गांव है किन्तु जनोचित सुविधाओं के कारण इसकी भौगोलिक उन्नति अवरुद्ध रही है और पुरातन स्वरूप बरकरार है। रही है अोचित सुविधाओं के ७. द्रोणमुख नदी के तटवर्ती नगर को 'द्रोणमुख' कहा जाता है। सूत्रकृताङ्ग तथा उत्तराध्ययन की टीकात्रों ने भी इसे इसी प्रकार स्पष्ट किया है। उत्तराध्ययन की टीका ने 'भृगुकच्छ' को 'द्रोणमुख' का उदाहरण भी बताया है। शिल्परत्न के अनुसार इसे बन्दरगाह माना गया है । ५ व्यापारिक केन्द्र के रूप में 'द्रोणमुख' नामक नगर का विशेष महत्त्व रहा होगा। समुद्र तट पर अवस्थित इस नगर में वणिक आदि व्यापारी वर्ग का प्राधान्य था । कोश ग्रन्थों के प्रमाणों से 'द्रोण मुख' चार सौ ग्रामों के मध्य अवस्थित होते थे । १. द्रष्टव्य --नवभारत टाइम्स, नई दिल्ली, २७ मार्च, १९७६ 'नजर अपनी अपनी' शीर्षक के अन्तर्गत, किसन सिंह चौहान, गांव कूत्रां खेड़ा, डाकखाना-भावसी, सहारनपुर का एक पत्र २. पुराणि राष्ट्राणि मटम्बखेटान्द्रोणीमुखान् खर्वडपत्तनानि । -वराङ्ग०, १६.१९६ स सहस्रणोनद्रोणमुखलक्षस्य रक्षकः । -पद्मा०, १६.१६६ ग्रामाकरद्रोणमडम्बपत्तनानि । -वसन्त०, १३.४३ ३. भवेद् द्रोणमुखं नाम्ना निम्नगातटमाश्रितम् । -आदि०, १६.१७३ ४. द्रोणाख्यं सिन्धुवेला-वलयितम् । (सूत्र० टीका); द्रोणमुखं जलस्थलनिर्गमनप्रवेशं तत् भृगुकच्छादिकम् । -(उत्तरा० टीका) ५. तदेवाब्धेश्च नद्याश्च संगमागतपोतकम् । द्वौपान्तरवरिणग्जुष्टं विदुर्दोणीमुखं बुधाः ।। -शिल्परत्न, ५.२१२ ६. वही, ५.२१२ ७. ग्रामोपग्रामशताष्ट के । तदधं तु द्रोणमुखं ।-(वाचस्पति), अभिधान०, ६७२
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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