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________________ आवास व्यवस्था, खान-पान तथा वेश-भूषा २५५ साय रखता है । संभवतः अनेक प्रान्तों में 'निगम संचेतना' ग्राम के रूप में ही विकसित हो रही थी । 'ग्राम' की नगरोन्मुखी विकास की प्रवृत्तियां 'निगम' में सन्निविष्ट होती जा रही थीं । द्विसन्धान महाकाव्य के टीकाकार नेमिचन्द्र २ तथा चन्द्रप्रभ० महाकाव्य के टीकाकार मुनिचन्द्र की विद्वन्मनोवल्लभाटीका ३ (१५०३ ई० ) के अनुसार 'निगम' - 'भक्तग्राम' के रूप में स्वीकार किए गए हैं। इस प्रकार मध्यकालीन सामन्नवादी अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में इन 'भक्तग्रामों' की अनाज के 'वितरण केन्द्र' (Distrlbuting Centre) के रूप में संभावना की जा सकती है । जैन संस्कृत महाकाव्यों के वर्णन 'निगम' के स्वरूप पर स्पष्ट प्रकाश डालते हैं । प्राय: ये 'निगम' नगर के समीपस्थ राजमार्गों पर स्थित होते थे । ४ इन 'निगम' ग्रामों में रहने वाले गोपों (ग्वाले, अथवा अहीर ) तथा गोपवधुनों ( ग्वालिनों) का भी उल्लेख प्राया है । अधिकांश जैन महाकाव्य दक्षिण भारत से सम्बद्ध हैं । ऐतिहासिक दृष्टि से विचार करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि 'रट्ठ', 'मागरण' शब्द ६ श्रन्ध्रप्रदेश में नगर - विभाजन की संज्ञानों के रूप में प्रचलित थे । 'निगमाः ' ( प्राकृत - रिणगमा ) भाषा विज्ञान के 'शब्द - विपर्यय' नामक ध्वनि - सिद्धान्त से प्रभावित होकर संभवत: कन्नड भाषा में नगर - विभाजक 'मागरिण' की संज्ञा के रूप में प्रचलित हो गया था । इस प्रकार नगर - विभाजन की वास्तुशास्त्रीय परम्परा की दृष्टि से भी 'निगम' संस्थिति १. जनैः प्रतिग्रामसमीपमुच्चैः कृता वृषाढ्यैर्व रधान्यकूटाः । यत्रोदयस्ताचलमध्यगस्य विश्रामशैला इव भान्ति भानो ॥ - धर्म ०, १.४८ २. स रामः युधिष्ठिरश्च निगमात् - भक्तग्रामान् ददर्श । — द्विस०, ४.४६ पर नेमिचन्द्रकृत पदकौमुदीटीका, पृ० ६७ ३. कुलभूधरैरिव निगमाः - भक्तग्रामाः विभान्ति । - चन्द्र०, १.१६ पर मुनिचन्द्रकृत विद्वन्मनोवल्लभाटीका, पृ. ८ चन्द्र०, १३.३६-४६ वही, १३.४२, १३.४६, १६.२ ४. ५. . Kunduri Iswar Datt, Inscriptional Glossary of Andhra Pradesh, Hyderabad, 1967, p. xxxl. ७. 'Māgani' or 'Maganl' in Kannada means a part of a Taluk or a District. This Administrative division also is found during Vijaya Nagar period. This word appears to be a part of Rajya or Sima. वही, पृ० xxxil
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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