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________________ ܪ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज दिव्यास्त्र दिव्य शक्ति से सम्पन्न माने जाते थे । हम्मीर महाकाव्य ( चौदहवीं शताब्दी) में निर्दिष्ट यवन नरेश अलाउद्दीन खिलजी एवं हम्मीर के बीच हुये युद्ध वर्णनों में ‘भैरव यंत्र' से तोप, 'आग्नेयास्त्र' से बन्दूक एवं 'वह्निगोलक' से बारूद के गोलों की संभावना की जा सकती हैं ।" मजूमदार महोदय ने खिलजी वंश की सेवाओं को तोप से युक्त तो माना है परन्तु 'बारूद' जैसे विस्फोटक पदार्थ की संभावना से इन्कार किया है । परन्तु श्राग्नेयास्त्र प्रयोग की उपर्युक्त पृष्ठभूमि से यह सिद्ध हो जाता है कि हम्मीर महाकाव्य कालीन सेना के द्वारा प्रयुक्त 'वह्निगोलक' बारूदी गोले ही रहे थे । 'भैरव यंत्र' अर्थात् 'तोप' से इनका प्रक्षेपण किया जाता था । युद्धोपयोगी वाद्ययंत्र सेना में वाद्य यन्त्रों का वीरता का संचार करने तथा योद्धाओं के युद्धउत्साह को बढ़ाने को दृष्टि से विशेष महत्त्व होता था । सम्भवतः तीन बार वाद्ययन्त्रों को बजाया जाता था। सेना प्रयाण के समय ४ युद्ध प्रारम्भ होने के समय तथा युद्ध समाप्त होने के समय ६ । हर्षकालीन सेना के समय में युद्ध के लिये कूच करते हुये भी सङ्गीत का उपयोग होता था । ७ मेरी 'पटह'' वाद्ययन्त्रों में सर्वाधिक प्रमुख थे । हर्षचरित के अनुसार 'शंख' तथा 'पटह' सेना - प्रयाण के समय विशेष रूप से बजाये जाते थे । १० इन वाद्ययन्त्रों के अतिरिक्त जैन संस्कृत महाकाव्यों में निम्नलिखित वाद्य यन्त्रों का उल्लेख प्राप्त होता है, जिनका युद्धावसर पर प्रयोग होता था ११, दुन्दुभी, १२ मृदङ्ग, 19. ८. ६. वही, ३.५६ यक्का, १. द्रष्टव्य, प्रस्तुत ग्रन्थ, पृ० १७६ २. मजूमदार, भारतीय सेना का इतिहास, पृ० ३३२ ३. जयन्त०, ६.६६, १०.२६ ४. वही ५. वही ६. वही १०. हर्षचरित, पृ० १५२, तथा १८४ ११. हम्मीर०, ३.५६ १२. वराङ्ग०, २०.७३ १३. द्वया०, १८.४० १३ मजुमदार, भारतीय सेना का इतिहास, पृ० २२१ हम्मीर०, ३.३६ १४. द्वया०, ६.१६ १५. द्वया०, १८.४० ढक्का, १४ तथा काहल । काहल १५
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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