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________________ डॉ. नगेन्द्र ने 'भारतीय काव्यशास्त्र की भूमिका' में तथा रघुनाथ दामोदर करमकर ने 'काव्यप्रकाश' में पाञ्चाली, गौड़ी तथा वैदर्भी से अभिन्नता दर्शायी है साथ ही कोमला, परुषा एवं उपनागरिका वृत्तियों के साथ भी तुलना की है। रीति के आत्मनिष्ठ पक्ष के सम्बन्ध में शारदातनय (११७५-१२५० ई.) का यह मत भी उपादेय है कि प्रत्येक कवि में अपनी स्वनिष्ठ विशेषता होती है और इसी कारण प्रत्येक कवि की वाणी भिन्न रूप धारण करती है जबकि अक्षरों की योजना वही होती है एवं पदों की संघटना भी वही होती है ।२ इस प्रकार अनन्तता का संकेत करते हुए उन्होंने कहा है कि प्रत्येक मनुष्य,उसके प्रत्येक भाव एवं उसकी प्रत्येक अभिव्यक्ति में परस्पर अन्तर होता है अतः इस कारण ये अभिव्यक्ति पद्धतियाँ अनन्त हो सकती हैं ।३ १. (क) काव्यप्रकाश-सं. रघुनाथ दामोदर, पूना-१९६५, १०/८१ वृत्ति (ख) भारतीय काव्यशास्त्र की भूमिका (दिल्ली-१६६३) पृ. ३८-४०. २. भावप्रकाश : पृ. ११-१२ 'त एवाक्षरविन्यस्तास्त एवं पदपंक्तयः । पुसि पुसि विशेषेण कापि कापि सरस्वती ।। ३. सम कन्सेप्ट्स् आफ दि अलंकारशास्त्र, मद्रास; १९४२ पृ. १७१ से उद्धृत । ( ६२ )
SR No.023197
Book TitleSahitya Ratna Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1989
Total Pages360
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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