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________________ प्रस्थानमयसूरिमन्त्र के साधक और विशुद्ध संयम के आराधक परम पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय सुशीलसूरीश्वरजी म. सा. नूतन साहित्यादि सर्जन कार्य में अहर्निश मग्न रहते हैं तथा जैनशासन की सर्वत्र अनुपम प्रभावना करते हैं । आपने इस सुप्रसिद्ध साहित्यविषयक 'श्रीसाहित्यरत्न - मञ्जूषा' ग्रन्थ का प्रतिपरिश्रमपूर्वक अनेक साहित्यग्रन्थों के अवलोकन तथा चिन्तन-मनन के बाद सरल संस्कृत भाषा में सुन्दर सर्जन किया है। तथा इसका प्राक्कथन भी संस्कृत भाषा में संक्षिप्त लिखा है । तदुपरान्त इस ग्रन्थ का सम्पादन कार्य भी आपने सुन्दर किया है । आपको इस ग्रन्थ- सर्जन की सत्प्रेरणा करने वाले साहित्यसम्राट्-व्याकरणवाचस्पति शास्त्रविशारद कविरत्न - परमपूज्याचार्यप्रवर श्रीमद् विजयलावण्यसूरीश्वरजी म. सा. के पट्टधर शास्त्रविशारद - परमपूज्याचार्य श्रीमद् विजय - विकासचन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. एवं राजस्थानकेसरी आचार्य श्रीमद् विजयमनोहरसूरीश्वरजी परम पूज्य म. सा. थे । इस ग्रन्थ का शुद्ध एवं सुन्दर संशोधन पण्डित श्री हीरालाल शास्त्री, जालोर ने किया है तथा इस ( ५ ).
SR No.023197
Book TitleSahitya Ratna Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1989
Total Pages360
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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