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________________ गुड़ आदि की मिठास के सूक्ष्म अन्तर का विश्लेषण संभव नहीं है । इस प्रकार सूक्ष्म एवं अपरिच्छेद्य वैचित्र्य के रहते हुए भी दण्डी ने कहा है कि इन मार्गों (रीति) के पारस्परिक स्थूल अन्तरों को पृथक् पहचाना जा सकता है। रीति के स्थूल दो भेदों - वैदर्भी और गौड़ी का उल्लेख करते हुए दण्डी ने उन्हें प्रस्फुटान्तर माना है | २ वैदर्भी तथा गौड़ी पद्धतियाँ मूलतः तत् स्थान के नाम से व्यवहृत हैं । इन दोनों पद्धतियों के पारस्परिक अन्तर को निर्धारित करने के लिए कुछ भेदकतत्त्वों की चर्चा भी आचार्य दण्डी ने की है । काव्यगुरण ही वैदर्भी तथा गौड़ी के भेदकतत्त्व हैं । काव्यगुण - दस प्रकार के हैं :१. श्लेष ३ - अक्षरों और पदों का सुन्दर समायोजन, संश्लिष्ट या गुम्फित होना, जिससे वर्णयोजना तथा पदयोजना में शिथिलता न हो सके । - १. वही, - १,१०१-१०२ तद्भेदास्तु न शक्यन्ते वक्तु ं प्रति कविस्थिताः ॥ इक्षु-क्षीरगुडादीनां माधुर्यस्यान्तरं महत् । तथापि न तदाख्यातु सरस्वत्यापि शक्यते ।। २ . वही - १, ४० प्रस्त्यनेको गिरां मार्गः सूक्ष्मभेदः परस्परम् । तत्र वैदर्भगौडीयौ वर्ण्यते प्रस्फुटान्तरौ ।। ३. वही - १,४१,१०० ( ४८ )
SR No.023197
Book TitleSahitya Ratna Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1989
Total Pages360
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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