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________________ काव्यतत्त्वों का विवेचन करने वाले ग्रन्थों के लिए 'साहित्यशास्त्र' का प्रयोग भी परवर्ती कुछ प्राचार्यों ने उचित समझा है; अन्वेषणा करने पर ऐसा प्रतीत होता है । आचार्य भामह आदि के 'शब्दाथों सहितौ काव्यम्' के बाद काव्यविवेचन ग्रन्थों का नाम भी साहित्यशास्त्र या साहित्य विद्या के नाम से व्यवहृत होने लगा। प्रायः 'साहित्यविद्या' का विकास अर्थात् प्रचलन ६०० ई. के समय से है क्योंकि इसी काल के प्राचार्य राजशेखर ने साहित्य तथा 'पञ्चमीसाहित्यविद्या' पद का प्रयोग समान रूप से किया है । आलोचकों के विमर्शानुसार भामह और दण्डी से पूर्व काव्यतत्त्वविवेचक शास्त्रों का नाम क्रियाकल्प था ।२ वात्स्यायन के कामशास्त्र में 'क्रियाकल्प' को भी चौंसठ कलाओं में सम्मिलित किया है। बाल्मीकि रामायण के उत्तरकाण्ड में भी क्रियाकल्प का उल्लेख काव्यतत्त्वविवेचक शास्त्र के रूप में प्राप्त होता है ।३ १. History of Sanskrit Poetics by P.V. Kane (Page 329) २. वही. प. ३३० ३. क्रियाकल्पविदश्चैव तथा काव्यविदो जनान्-अ. ६४/७ ( ३७ ) .
SR No.023197
Book TitleSahitya Ratna Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1989
Total Pages360
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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