SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काव्य का महत्त्व और उपयोगिता आगम, निगम शास्त्रों की विद्यमानता में काव्य के पठन, पाठन आदि में श्रम करना व्यर्थ है क्योंकि उनकी प्रामाणिकता स्वतः सिद्ध है तथा उक्त काव्य-प्रयोजन के माध्यम से बताई गई निःश्रेयस्-सिद्धि, परमानन्दप्राप्ति भी आगम, निगमों के माध्यम से सुतराम् सिद्ध है । फिर काव्यार्थ यत्न क्यों ? इसी प्रकार के एक प्रश्न का उत्तर देते हुए आचार्य विश्वनाथ ने कहा है-“कटुकौषधोपशमनीयस्य रोगस्य सितशर्करोपशमनीयत्वे कस्य रोगिणः सितशर्कराः प्रवृत्तिः सा धीयसी न स्यात् ।” अर्थात् कड़वी औषधि से मिटने वाला रोग यदि मीठी मिश्री से दूर हो जाये तो भला कौनसा रोगी मिश्री के आस्वादन के प्रति उपेक्षाभाव रखेगा। अतः स्वतः सिद्ध है कि वेदादिशास्त्रों के अध्येता भी काव्य को सुरुचि एवम् आनन्द के साथ पढ़ेगे । काव्य के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए अग्निपुराण में कहा गया है नरत्वं दुर्लभं लोके, विद्या तत्र सुदुर्लभा । कवित्वं दुर्लभं तत्र, शक्तिस्तत्र सुदुर्लभा । ( ३२ )
SR No.023197
Book TitleSahitya Ratna Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1989
Total Pages360
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy