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________________ ३६७) उठने के बाद भी जो अगर आंख में नींद हो तो साँस का रोधन करना। ३६८) रात्री को निद्रामें से उठकर लघुशंका निवारण करके इरियावहि करके साधु जधन्य से कमसे कम ३ गाथा का स्वाध्याय करके प्रमाद दोष दूर करके फीर सोए। ३६९) उत्सर्ग से शरीर उपर कपडा ओढे बीना मुनि सोए । ठंडी लगे तो भी ठंडी न जाए तो बाहर जाकर कार्योत्सर्ग करके फीर अंदर आके क्रमश: १-१ वस्त्र ओढे । जैसे समाधि रहे वैसा करें। ३७०) बाहर से आकर समान उपाश्रय में ठहरनेवाले महेमान साधु की उपाश्रय वाले साधु ३ दिन आहार पानी लाने की भक्ति करे। ३७१) दिवाल से कम से कम १ हाथ दूर संथारा शय्या करना । ३७२) जिनालय जाते समय आचार्य के साथ १-२ साधु को पात्रे साथ में लेने, क्योंकि वापिस आते समय यदि कोई गृहस्थ गोचरी के लीए प्रार्थना करे तो उसे लाभ दे सके। ३७३) स्थापना कुल के घर यानि जहाँ से आचार्य, ग्लान या महेमान साधु की भक्ति योग्य भिक्षा मीले ऐसे घर । वहाँ सामान्य साधु के लीए भिक्षा लेने नहीं जाना, लेकिन उपर बताए गए विशिष्ट पुण्यात्माओ के लीए ही जाना । ताकी उनकी अच्छी भक्तिसेवा हो सके। ३७४) पडिलेहण करते हुए बातचीत करे, पच्चखाणादि देवे तो दोष लगे, छ:काय की विराधना होवे । ३७५) पडिलेहणादि प्रत्येक अनुष्ठान भगवान की आज्ञा मुजब करने से कर्म निर्जरा होती है, जिनोक्त पडिलेहणादि प्रत्येक योग की आराधना करने से अनंत आत्मा केवली बनकर मोक्ष में गए है।
SR No.023184
Book TitleAgam Ke Panno Me Jain Muni Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvallabhsagar
PublisherCharitraratna Foundation Charitable Trust
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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