SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२८) धोबी की तरह पछाडके वस्त्र न धोने । ३२९) साधु को निर्वाण (मोक्ष) ही एकमात्र कर्तव्य है, और उसके लिए ज्ञान-दर्शन-चारित्र की आराधना है, और यह सात्वीक आराधना में सहायभूत शुध्द निर्दोष आहार है इसलीए साधु अतिजागृत होकर एषणीय दोषरहित आहार की गवेषणा करे । ३३०) आधाकर्मी गोचरी वापरनेवाले के साथ बैठकर शुध्द गोचरी वापरनेवाला भी दोषी है, क्योंकि उसमें उसके ‘अनुमति दोष' लगता है। ३३१) रस्सी से, या सीडी से नीचे उतरना यह द्रव्य अध: कर्म संयम से, शुभ लेश्या से नीचे उतरना यइ भाव अध: कर्म (आधाकर्मा) ३३२) आधाकर्मा वापरनेवाला निम्न भव का आयुष्य बांधता है, शेष कर्मो को दुर्गति सन्मुख करता है, तथा तीव्र भाव से कर्म को गाढ करता है । ३३३) मैं श्रेष्ठ प्रवचनकार हुँ, (इसलिए लोक मुझे सुंदर गोचरी-पानी देते है इस भाव से गोचरी व्होरानेवाला साधु ज्ञानावरणीय कर्म बांधता है। ३३४) आधाकर्मी प्राय: स्निग्ध और अनुकूल होने से (अतिआहार) भी हो जाता है, उससे स्वाध्याय में हानी-अजीर्ण-चिकित्सा षट्कायवध आदि अनेक दोष उद्भव होते है। ३३५) शुध्द गवेषक साधु भुल से (अनजाने में) आधाकर्मी वहोराकर वापरे तो भी वह शुध्द है, क्योंकि उसमें ऐसा दोषित वहोराने का उद्देश नहीं है।
SR No.023184
Book TitleAgam Ke Panno Me Jain Muni Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvallabhsagar
PublisherCharitraratna Foundation Charitable Trust
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy