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________________ ३०/२ श्री चंदाविजय पयन्ना सूत्र २३७) जिसके पास से विद्या सिखी हो (ज्ञान प्राप्त कीया हो) उनकी आशातना अविनय करनेवाले को विद्या का फल नहीं मिलता है। २३८) जो साधु-साध्वी उग्र तपस्या करते हुए भी गुरुआज्ञा का पालन नहीं करते या अवहेलना करते है, वह अनंत संसारी बनते है। २३९) उत्तम शिष्य की परिक्षा योग्य विशिष्ट लक्षण जो मुमुक्षु सत्व गुण से युक्त, मधुर भाषी, कीसीकी चाडी-चुगली नहीं करनेवाला, अलोभी, जिनशासन का अनुरागी, श्रध्दा से परिपूर्ण, विकार रहित, विनयप्रधान, देश-काल की समयज्ञ जाननेवाला, अल्पनिंद्रावान हो, वह कुशल शिष्य बनने योग्य है । २४०) जो श्रुतज्ञान में कुशल हो लेकिन अविनीत अहंकार युक्त हो तो वह प्रशंसनीय नहीं है। २४१) क्रिया संपन्न ज्ञानी जीव ही भवसमुद्र कुशलता से तर सकता है । २४२) जिस प्रकार वैधक ग्रंथो के अभ्यास के बिना वैध व्याधि की चिकित्सा को कुशल रीत से नहीं जान सके, उसी प्रकार आगमो के ज्ञान बिना मुनि चारित्र शुध्दि के उपायो को कुशल रुप से जान सकता नहीं है । इसलिए तीर्थंकर प्ररुपीत आगम शास्त्रो के अर्थ पूर्वक के अभ्यास करने में सदा उद्यमशील बनना चाहिए। २४३) ज्ञानाभ्यास की रुची वाले को कदाचित बुध्धि न हो तो भी उद्यम करना चाहिए, क्योंकी बुध्धि ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोमशम् से ही प्राप्त होती है । और सम्यक ज्ञान की प्रवृत्ति में जुडने से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम होता है। २४४) जीस एक पद के भी श्रवण-चिंतन से वैराग्य की वृध्धि होती हो तो वह भी सम्यक ज्ञान है।
SR No.023184
Book TitleAgam Ke Panno Me Jain Muni Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvallabhsagar
PublisherCharitraratna Foundation Charitable Trust
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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