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________________ २४. चउशरण पयन्ना सूत्र २०४) चार शरण का स्वीकार, दृष्कृतगर्हा और सुकृत अनुमोदना बारम्बार करनी चाहिए, क्योंकि यह मोक्ष का कारण है । २०५) जिनभक्ति से रोमांचित होकर, आनंदाश्रु से, गदगदीत स्वर से, दोनो हाथ की अंजली जोडकर मस्तक पर रखकर अरिहंत का शरण स्वीकारना चाहिए । २५. आउरपंच्चखाण पयन्ना सूत्र २०६) जो साधु गुरु वचन विरोधी, ज्यादा मोहवाले, शबल दोष युक्त, कुशील, असमाधि से मरे, वह अनंत संसारी बने . २०७) मृत्यु के समय भी जिनेन्द्रोने बताए हुए उपकरण से अधिक उपकरण रखे, न वोसिरावे, वह जन्म मरण की परंपरा को बढाता है । २०८) चिरकाल के अभ्यास के बिना (पूर्व में कभी उपवासादि तप न कीया हो,) अकाले अनशन करनेवाले पुरुष मृत्युसमयमें पूर्वकृत कर्म से योग से पीछे हटते है । २०९) मृत्युकाल के समय में अति समर्थ चित्तवालो को भी १२ अंगरुप श्रुतज्ञान का चिंतन शक्य नहीं है, इस लिए वीतराग मार्ग के पद रुप १ श्लोक ( नवकार मंत्र) का भी बारम्बार वैराग्य पूर्वक चिंतन - स्मरण करके मरना चाहिए ।
SR No.023184
Book TitleAgam Ke Panno Me Jain Muni Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvallabhsagar
PublisherCharitraratna Foundation Charitable Trust
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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