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________________ अशुभ द्रव्य या क्षेत्रादि को पाकर अशुभ कर्म उदय में आ सकते है क्योंकि कर्मो के विपाक के हेतू सामान्य से पांच है। १. द्रव्य २. क्षेत्र ३. काल ४. भाव ५. भव १८५) देवलोक के तमाम द्वारो (दरवाजो) पर अष्टमंगल होते है। १५. श्री पन्नवणा सूत्र १८६) आगम को सुनकर-जानकर श्रोताजन सम्यग्ज्ञान, जीवादि तत्व से भावित बने यह इसका अनंतर फल और जानकर संसार से विरकत् बनकर संयम मार्ग में आगमानुसारी सम्यक प्रवृत्ती करके सर्व कर्मक्षय रुप मोक्ष को प्राप्त करे यह आगम वाचना का परंपर फल है। १८७) मनन करे वो मुनि और मान न करे वो मुनि । १८८) साधु के द्वारा दिक्षा छोडकर पुनः गृहस्थी बनने पर उसने ली हुई करेमि भंते की 'जावजीवं पच्चखामि' की प्रतिज्ञाभंग का बड़ा दोष लगता है। १८९) प्रश्न : देवताओ के भवन और आवास (दोनों में) क्या अंतर है? उत्तर : जो बाहर से गोल, अंदर से समचोरस, नीचे के भाग से कमल की कर्णीका (पंखुडी) आकार के रहे उसे भवन कहेते है और जो शरीर प्रमाण बडे मंडपवाले, विविध मणी-रत्न आदि दिपक की रोशनी से सुशोभित हो उसे आवास कहेते है । नरकावास बाहर से चोरस अंदर से गोल है।
SR No.023184
Book TitleAgam Ke Panno Me Jain Muni Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvallabhsagar
PublisherCharitraratna Foundation Charitable Trust
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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