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________________ १३६) भगवान महावीर ने सोमिल बाह्मण के पूछने पर यात्रा' का अर्थ कहा कि, 'मेरे लीए तप-नियम-संयम-स्वाध्याय आवश्यकादि योग में यतना ही यात्रा है'। १३७) प्रश्न : पृथ्वी-अप्-तेउ-वायु और वनस्पती काय के जीवो के घीसने-मारने से उन्हे कीतनी वेदना होती है ? उत्तर : जैसे कोई तरुण या बलवान पुरुष, कोई जीर्ण-वृध्दजर्जरित देहवाले दुर्बल पुरुष के मस्तक पर मुष्टी से प्रहार करे, तब उस वृध्द को जीतनी वेदना होवे उससे भी अधिकतर अनिष्ट वेदना धीसने-मसलने या पीसने-छेदने से इन जीवो को होती १३८) चारण मुनिओ के २ प्रकार है , १. विधाचारण मुनि २. जंधाचारण मुनि अंतर रहीत बेले की पारणे बेला (छठे) तप की तपश्चर्या करने पूर्वक पूर्वधर श्रुत के द्वारा उत्तर गुण लब्धि से कर सके ऐसा तप करने से उत्पन्न हुई विद्या चारण लब्धि के धारक मुनि को 'विद्याचारण मुनि' कहते है। ठीक इसी प्रकार निरंतर तेले के पारणे तेले (अठ्ठम)...... (बाकी सब उपर मुताबिक) ...... वाले मुनि को जंधाचारण मुनि कहते है । ये दोनो-आकाशचारी है, यानि अपने चरण के द्वारा सूर्य किरणो का आश्रय लेकर जानेवाले होते है। ऐसे मुनि नंदिश्वर द्वीप-पांडुकवन नंदनवन-मानुषोतर पर्वत आदि स्थानों में रहे हुए जिन चैत्यो (जिन मंदिरो को) अपनी लब्धि के द्वारा जाकर वंदना करके आते है।
SR No.023184
Book TitleAgam Ke Panno Me Jain Muni Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvallabhsagar
PublisherCharitraratna Foundation Charitable Trust
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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