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________________ ८९) ८८) माता-पिता, शेठ (स्वामी) और धर्माचार्य (गुरु) का बदला ऋण चूकाया नहीं जा सकता । अगर कोई व्यक्ति अपने माता पिता को सुगंधी द्रव्यों से स्नान कराकर, किंमती वस्त्र अलंकार पहनाकर, रसयुक्त ३२ व्यंजनोयुक्त भोजन कराकर उनको अपने कंधोपर बिठाकर भी सेवा करे तो भी उनके उपकार का बदला चूकाया नहीं जा सकता लेकिन व्यक्ति अपने माता पिता को केवली प्ररुपित धर्म समजाकर-उनको धर्म से जोडे, आचरण से धर्मी बनावे तो वह अपने माता-पिता के उपकार का बदला चूका सकता है। स्थवीरो के तीन प्रकार - १. ६० साल से ज्यादा उम्रवाले साधु वय स्थवीर. २. २० साल से ज्यादा दिक्षा पर्याय वाले साधु पर्याय स्थवीर ३. ठाणांग-समवायाग सूत्र के धारक साधु-श्रुत स्थवीर आहार देना, वंदन करना आज्ञानुसार वर्तन करना इत्यादि से वय स्थवीर की भक्ति करनी खडे होना, आसन देना, प्रशंसा करनी चाहिए, उनसे नीचे आसन पर बैठना इत्यादी से श्रुत स्थवीर की भक्ति करनी। और खडा होना-वंदन करना - दांडा आदि ग्रहण कर इत्यादि में गुरु के निर्देश अलावा भी पर्याय स्थवीर की भक्ति करनी। दृढधर्मी, संविग्न, ऋजु, संग्रह- उपग्रह कुशल, सूत्रार्थ वेता, साध्वीओकी भाव संयम की रक्षा करने वाले योग्य मुनि को गणि पद देना चाहिए। ९१) अति आतापना लेने से, उत्कृष्ट क्षमा रखने से और घोर निर्मल तपस्या करने से श्रमण तेजोलेश्या लब्धि का धारक बनता है। भगवती सूत्र में भी कहा गया है कि,
SR No.023184
Book TitleAgam Ke Panno Me Jain Muni Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvallabhsagar
PublisherCharitraratna Foundation Charitable Trust
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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