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________________ ४०] गौतमचरित्र। नेत्रोंवाली) नामकी रानी थी जोकि प्रेमसे भरपूर थी और इंद्राणी, रतिदेवी, नागस्त्री अथवा देवांगनाके समान सुन्दर जान पड़ती थी ॥८६॥ वह रानी अपने लीलापूर्वक गमन करनेमें मदोन्मत्त हाथियोंकी उत्तम गतिको भी जीतती थी। इसीलिये मानों वे हाथी अपने शरीरपर धूलिक समूहको फेंक रहे थे ॥ ८७ ॥ उसकी उंगलियोंमें वीसों नख बहुत अच्छे शोभायमान थे, वे द्वितीयाके चंद्रमाके समान थे और रुधिरकी लालिमासे बड़े ही मनोहर जान पड़ते थे ।।८८॥ उसके जंघा बड़े ही सुन्दर और मनोहर थे, वे केलेके खम्भेके समान थे और उद्दीपक थे॥८९॥ वह रानी अपनी मनोहर कटिशोभासे सिंहकी कटिशोभाको भी जीतती थी। यदि ऐसा न होता तो फिर सिंह पर्वतोंकी गुफाओंमें ही क्यों पड़ा रहता ? ॥१०॥ उसकी नाभि गम्भीर, गोल और मनोहर थी तथा कामके विलास करनेके लिये रससे भरी हुई (जलसे भरी हुई) छोटी सरोवरीके समान थी ॥९१॥ उसके उन्नत कुच विल्वबभूव प्रीतिमंडिता । शचीव रतिदेवीव नागस्त्री किं सुरांगना ॥८६॥ निजगमनलीलाभिः सा जयतिस्म सद्गतिम् । अतस्ते स्वतनौ नागाः क्षिपंति पांशुसंचयम् ॥८७॥ यदंगुलीषु भासते नखरा विंशतिप्रमाः । द्वितीयेंदुसमाकाराः शोणप्रभा मनोहराः ॥८६॥ यस्याः शुशुभतु जंधे शुभाकारे मनोहरे । कदलीस्तंभतुल्ये हि मदनशमधी यथा ॥८९॥ सा हरत्तत्कटीशोभा कशकच्या सुकांतया । अन्यथा स कथं सिंहो गिरिगुहासु तिष्ठति ॥९०॥ यस्या नाभिः सुगंभीरा वर्तुलाऽभून्मनोहरा । पंचशरविलासार्थ सरोवरीव सद्रसा ॥ ९१ ॥ विल्वफलसमौ
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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