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________________ २०२] गौतमचरित्र। करनेवाला है इसलिये भव्यजीवोंको यह जैनधर्म अवश्य धारण करना चाहिये ।। २६४॥ इस मेरे गच्छके स्वामी श्रीनेमिचन्द्र हुए थे जो कि समस्त पापोंको नाश करनेवाले थे, उनके पहपर श्रीयशःकीति विराजमान हुए थे, ये श्रीयश कीर्ति भी पुण्यकी मूर्ति थे, अनेक मुनि, अनेक राजा और समस्त जनसमुदाय उनके चरणकमलकी सेवा करता था। उनके पट्टपर श्री भानुकीर्ति बिराजमान हुए। ये भी सिद्धांतशास्त्रोंके अच्छे जानकार थे, कामदेवरूपी योद्धाको जीतनेवाले थे, गर्मीके मूर्यके समान उनका प्रताप था, तथापि वे असन्त शांत थे, और मान, लोभ आदि कषायोंको जीतनेवाले थे ॥२६॥ उनके पट्टपर श्रीभूषण मुनिराज विराजमान हुए थे। वे मुनिराज न्यायशास्त्र, अध्यात्मशास्त्र, पुराण, कोश, छन्द, अलंकार आदि अनेक शास्त्रोंके जाननेवाले थे, मिथ्यात्व अविरत आदि संसारके कारणरूपी अन्धकारको नाश करनेके लिये मूर्यके समान थे, वादी रूपी हाथियोंको चूर करनेके लिये सिंहके समान थे, सिद्धपरमेष्ठीका ध्यान करना, उनको नमस्कार करना, प्रणाम करना आदि कार्योमें सदा लीन रहते थे, क्रोधादि कषायरूपी पर्वतोंको चूर चूर करनेके लिये कीर्तिनामा, तत्पट्टे पुण्यमूर्तिर्मुनिनृपतिगणैः सेव्यमानांहियुग्मः । श्रीसिद्धांतप्रवेत्ता मदनभटजयी ग्रीष्मसूर्यप्रतापः, श्रीमच्छ्रीभानुकीर्तिः प्रशमभरधरो मानलोभादिजेता ॥२६५॥ न्यायाध्यात्मपुराणकोशनिचयालंकारछंदोविदो, मिथ्यात्वादितमोविनाशनरविर्वादीभनाशे
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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