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________________ प्रथम अधिकार। [११ देवांगनाएँ प्रत्येक स्थानपर उनके गुणोंका किसप्रकार गान कर सकती थीं ? भावार्थ-देवांगनाएं सब जगह उनके गुण गाती थीं इसीसे मालूम होता था कि उनकी कीर्ति सब ओर फैली हुई है ॥ ४७ ॥ उनके शत्रुओंका समुदाय व्याकुल हो गया था, क्षणभंगुर वा क्षणमें ही नाश होनेवाला होगया था और द्वितीयाके चन्द्रमाकी कलाके समान असन्त क्षीण होगया था ॥ ४८ ॥ उनकी बुद्धि मूर्यकी प्रभाके समान स्वभावसे ही प्रतापयुक्त थी और इसीलिये वह चारों प्रकारकी राजविद्याओंको प्रकाशित करती थी ॥४९॥ जिसप्रकार कामदेवके रति है और इंद्रके इंद्राणी है उसीप्रकार उन महाराज श्रेणिकके कांति और गुणोंसे मुशोभित चेलना नामकी रानी थी ॥ ५० ॥ उस रानीके नेत्र हिरणीके समान थे, उसका मुख चंद्रमाके समान सुंदर था, उसके केश श्याम थे, कटि क्षीण थी, कुच कठिन और बड़े थे, वह बहुत ही मनोहर थी, उसका माथा विस्तीर्ण था, नाक तोतेके समान थी, भोहें सुंदर थीं; बचन मीठे थे, उसका गमन मदोन्मत्त हाथीके समान यद्वैरिसंहतिर्जाता विकला क्षणभंगुरा । अभूरिमंडलाक्रांतिढितीयेंदुतनुर्यथा ॥४८॥ चतस्रो रानविद्या हि प्रद्योततेस्म यन्मतिः । निसर्गजा प्रतापाढ्या काष्ठाभेव त्विषांपतेः ॥४९॥ तस्याभूच्चेलना रामा सुकांतिगुणगौरवा । कामस्य रतिदेवीव शचीवापि दिवस्पतेः ॥१०॥ मृगेक्षणा च सोमास्या श्यामकेशा कृशोदरी। पीतपयोधरा रम्या विस्तीर्णभालपट्टिका ॥५१॥ कीरगंधवहा सुभ्रूःसुवाक् मत्तेभगामिनी। सुनाभिः सुकुमारांगी सुनखी गुणपूरिता ॥ १२॥ सदा तुष्टा पवि
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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