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________________ पांचवां अधिकार। १८६) कोस घटता जाता है, अर्थात् दूसरेमें साढ़े तीन कोस, तीसरेमें तीन कोस, चौथेमें ढाई कोस, पांचवेंमें दो कोस, छठेमें डेढ़ कोस और सातवेंमें एक कोस तकका अवधिज्ञान होता है ॥ २०६॥ अब आगे देवोंका वर्णन करते हैं। देव चार प्रकारके होते हैं-भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क और कल्पवासी। इनमेंसे भवनबासियोंके दस भेद हैं, व्यन्तरोंके आठ भेद हैं, ज्योतिषियोंके पांच भेद हैं और कल्पवासियोंके बारह भेद हैं । कल्पातीत देवोंमें कोई भेद नहीं है ॥२०७।। असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, द्वीपकुमार, अग्निकुमार, स्तनितकुमार, उदधिकुमार, दिक्कुमार, विद्युत्कुमार और वातकुमार ये दश भवनवासियोंके भेद कहे जाते हैं ॥२०८॥ किन्नर, किंपुरुष, महोरग, गंधर्व, यक्ष, राक्षस, भूत, पिशाच ये आठ व्यन्तरोंके भेद कहलाते हैं ॥२०९॥ सूर्य, चंद्रमा, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक तारे ये पांच ज्योतिषियोंके भेद हैं । ये सब ज्योतिषी देव मेरुपर्वतकी प्रदक्षिणा देते हुए सदा भ्रमण किया करते हैं ॥२१०, सौधर्म, ऐशान, सानत्कुमार, माहेंद्र, तदधोधश्च हीयते नरकं प्रति ॥ २०६॥ चतुर्णिकायका देवास्तेषां क्रमाददशाष्टकाः। पंच द्वादश वै भेदाः कल्पातीतास्तथापरे ॥२०७॥ असुरो हि सुपर्णाख्यो द्वीपाग्निस्तनिताब्धयः।कुमारा दिक् तडिद्वाता मता भवनवासिनः ॥ २०८ ॥ किन्नरयक्षगंधर्वकिंपुरुषमहोरगाः। पिशाचराक्षसौ भूतो व्यंतराः कथिता इमे ॥२०९ ॥ सूर्याचंद्रमसौ चाऽपि ग्रहनक्षत्रतारकाः । ज्योतिर्देवा इमे मेरुप्रदक्षिणानिशं भ्रमाः
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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