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________________ १२८] गौतमचरित्र। लहर लेता रहता है ॥१५२॥ यह परिग्रह क्रोध, मान, माया, लोभ आदि कषायोंको उत्पन्न करनेवाला है, मार्दव (कोमलता) रूपी मेघको उड़ानेके लिये वायुके समान है और नयरूपी कमलोंको नाश करनेके लिये तुषारके समान है । ऐसे इस परिग्रहकी भला कौन इच्छा करेगा ॥ १५३ ॥ यह परिग्रह व्यसनोंका घर है। सब पापोंकी खानि है और शुभ ध्यानको नाश करनेवाला है ऐसे इस परिग्रहको कौन बुद्धिमान पुरुष ग्रहण कर सकता है ॥ १५४ ॥ जिसप्रकार अग्नि इंधनसे तृप्त नहीं होती, समुद्र जलसे तृप्त नहीं होता और देर भोगोंसे तृप्त नहीं होते उसी प्रकार यह मनुष्य अपार धनसे भी तृप्त नहीं होता है ॥ १५५ ॥ जो मनुष्य इस परिग्रहसे रहित हैं वे ही इस संसारमें सर्वोत्तम गिने जाते हैं। वे ही पुरुष चतुरताके साथ धर्मरूपी वृक्षको उत्पन्न करते हैं और वे ही पुरुष इस जैनधर्मका प्रकाश करते हैं ॥ १५६ ॥ इसप्रकार अहिंसा, सत्य, अस्त्येय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन पांचों व्रतोंको मुनिराज पूर्ण रीतिसे पालन करते हैं और घरमें रहनेवाले गृहस्थ एक देश वा अणुरूपसे पालन इच्छेत्परिग्रहं को ना क्रोधमानादिकारकम् । मार्दवजलमुग्नातं नयपद्मतुषारकम् ।।१५३॥ केन परिग्रहो ग्राह्यो व्यसननिलयः सदा । खनिः समस्तपापानां शुभध्यानप्रणाशकः ॥१५४॥ नो तृप्यति यथा बहिरिंधनैरंबुधिनलैः । देवगणो यथा भोगैस्तथा बहुधनैर्नरः ॥१५॥ ये हि परिग्रहैहींना उत्तमास्ते प्रकीर्तिताः। धर्मवृक्षार्जने दक्षाःनिनमार्गप्रकाशकाः ॥ १५६ ॥ पंचव्रतानि चैतानि संपूर्णानि मुनीश्वराः ।
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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