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________________ • पाश्वनाथ-चरित्र - कोलाहल मच गया। जब यह हाल राजाको मालूम हुआ, तब वे बड़े सोचमें पड़ गये कि यह क्या मामला हुआ। उनका चेहरा उतर गया। उन्होंने सोचा कि मेरे किसी दुश्मनने ही उस व्यापारीके द्वारा यह विषैला फल मेरे पास भेजा था। अब इस मामले में क्या करना चाहिये। सोचते-सोचते राजाने गुस्से में आकर लकड़हारोंको हुक्म दिया कि उस पेड़को एकदम जड़से काट डालो। जिसमें उसका नामोनिशान भी न रहे। यह हुक्म पाते ही लकड़हारोंने उस पेड़को काट गिराया। यह हाल सुन अपने जीवनसे निराश बने हुए बहुतसे कोढ़ी, पङ्ग और अन्धे वहाँ आये और मरनेकी इच्छासे उस पेड़के फल और पत्ते चबाने लगे। देखते-देखते उस विचित्र आमके प्रभावसे वे सबके सब नीरोग और कामदेवके समान सुन्दर हो गये, उन लोगोंने बड़ी प्रसन्नता के साथ यह हाल जाकर राजाको सुनाया। यह सुन राजाको बड़ा अचम्भा हुआ और वे सोचने लगे,-"यह तो बड़े आश्चर्यकी बात है। वास्तवमें उस व्यापारीका कहना सच था। किसी कारणसे वह पहला फल ज़हरीला हो गया होगा।” यही सोचकर उन्होंने मालीको बुलाकर कसम दिलाते हुए पूछा,-"तू सव-सच बतला दे, तने वह फल कहाँ पाया था !” उसने कहा, "और सब फल कच्चे थे, केवल वही पककर ज़मीनमें गिरा हुआ था, इसी लिये मैं उसे आपके पास ले आया था।" यह सुन राजाने सोचा,-' जरूर वह फल जहरके ही प्रभावसे समयसे पहले पक कर गिर पड़ा था। इसके बाद उन्होंने उन रखवालोंको बुलवाया, जिनपर
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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