SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 596
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * आठवां सर्ग * ५४३ और वे सब वहीं बैठ गये। इसी तरह अन्यान्य देवताओंने मुनियोंको भी स्नानादिक कराया। इसके बाद सुगन्धित जल और पुष्पोंको वृष्टि करते हुए गीत, नृत्य, वाद्य और स्तुतिपूर्वक देव देवियोंने उनका पूजन किया । पूजन हो जानेपर दो शिबिकायें - पालखिये बनायी गयीं । उनमें भगवान तथा समस्त मुनिओंके शरीरको स्थापित कर, इन्द्रने भगवानकी और अन्यान्य देवताओंने मुनिओंकी शिविका अपने कन्धों पर उठायी। कुछ देवताओंने चन्दन और अगरकाष्टकी चिता पहलेसे ही तैयार कर रक्खी थी । उसीपर भगवान और मुनियोंके शरीर रख दिये गये । इसके बाद अग्निकुमार देवताओंने अग्नि रख दी और वायुकुमार देवताओंने वायु चला कर भगवान और मुनियोंके शरीरका अग्निसंसकार किया । जिनेश्वरकी अस्थियों को छोड़, जब शेष सभी धातु जल गय तब मेघकुमार देवताओंने क्षीरसमुद्रके जलसे चिताको बुझा दिया। इसके बाद भगवानकी भक्तिसे प्रेरित होकर शक और ईशानेन्द्रने ऊपरको दो दा लो। चमर और बलींद्रने नीचेकी दो दाढें ले ली । अन्यान्य इन्द्रोंने दांत लिये, देवताओंने अस्थिया ली और मनुष्योंने भस्मादिक पदार्थ ग्रहण किये। इसके बाद उस स्थान पर रत्नमय एक स्तूप बना कर समस्त देवता और इन्द्र नन्दीश्वरद्वीप गये । वहां शाश्वत जिन प्रतिमाके सम्मुख अट्ठाई महोत्सवकर सब लोग अपने-अपने अस्थानको चले गये। इसके बाद इन्द्रोंने अपने अपने विमानमें जाकरयत्नके साथ उन दाढोंको रख दिया। अब वे प्रति
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy