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________________ * ससम सर्ग. बाद राजाने वनराजको कई गांव, घोड़े और सिपाही देकर उसे कोतवाल बना दिया। इससे धनराजका उत्साह दुना हो गया। अब उसने अपने कार्य और व्यवहारसे राजाके समस्त सेवक तथा सारे राज-परिवारको अपनो मुट्ठीमें कर लिया। इधर वनजारा भी उसे खूब धन भेजा करता था, इस लिये वनराज अब चैनको वंशो बजाने लगा। एक बार राज्यके किसी अधिकारीने राजाके विरुद्ध विद्रोहका झण्डा खड़ा किया, इसलिये राजाने उसे दमन करनेके लिये अपने पुत्र नृसिंहके साथ वनराजको भी जानेकी आज्ञा दी। राजाकी आशा मिलते ही दोनों जन एक बड़ी सेनाके साथ विद्रोहियोंके सिरपर जा धमके और उनके किलेको चारों ओरसे घेर लिया। विद्रोही पहले तो किलेमें छिप गये ; किन्तु बादको बहुत कुछ ललकारने पर वे भी मरने-मारनेको तैयार हो गये। इसलिये अब दोनों दलोंमें भीषण युद्ध होने लगा, किन्तु धनराजको युद्ध निपु. णताने विद्रोहियोंके दांत खट्टे कर दिये । उसने शीघ्र ही विद्रो. हियोंको पराजित कर उनके नायकको गिरफ्तार कर लिया। इस युद्ध कौशलके कारण वनराजकी चारों ओर ख्याति हो गयी। कुछ दिनोंके बाद स्वयं राजा भी वहां आ पहुंचा। उसे विद्रोहियोंका पराजय देखकर जितना आनन्द हुआ, उससे कहीं अधिक वनराजकी ख्याति सुनकर दुःख हुआ। वह अपने मनमें कहने लगा,-“वनराज इस भीषण युद्ध में भी जीता रह गया। खैर, अब इसके नाशका कोई और उपाय करूंगा। यह सोचकर उसने
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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