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________________ *सप्तम सर्ग. सत्य है। उसमें लेशमात्र भी भसत्य नहीं है। इस समय मैं कर्म क्षय करनेके लिये ध्यान कर रहा हूँ, इसलिये अब अधिक बातें नहीं बतला सकता। आप हेमपुरमें केवली भगवानके पास जाइये। वे भापको सब बातें स्पष्टतापूर्वक बतलायेंगे। मुनिकी यह बात सुन कुमार उन्हें ममस्कार कर अपनी माताके साथ अपने घर गया। कुमारको देखकर उसके माता-पिताको बड़ा ही आनन्द हुआ ; किन्तु कुमारकी सारी हँसी-खुशी हवा हो गयी थी। उसने एकान्तमें अपनी विद्याधरो माताके पैर पकड़ कर पूछा-“हे माता! सच बतलाइये कि मेरे वास्तविक माता-पिता कौन हैं ?" विद्याधरीने कहा, "वत्स! आज तू ऐसा प्रश्न क्यों पूछ रहा हैं ? मैं ही तेरी वास्तविक माता और यही तेरे वास्तविक पिता हैं। हमी दोनों जनने तुझे पालपोस कर बड़ा किया है।” कुमारने कहा, “यह तो मैं भी जानता हूँ कि आप लोगोंने मुझे पाल-पोस कर बड़ा किया है, किन्तु मैं अपने उन मातापिताका पता पूछ रहा हूँ, जिन्होंने मुझे जन्म दिया है। विद्याधरीने कहा, “बेटा! उनके सम्बन्धमें मैं कुछ भी नहीं जानतो। यदि तुझे कुछ जानना ही हो तो अपने पितासे पूछ सकता है।" ___ माताकी यह बात सुन कुमार अपने पिताके पास गया और उससे यह हाल पूछा। विद्याधरने उसे समस्त पूर्व वृत्तान्त कह सुनाया, किन्तु माता-पिताका नाम मालूम न होनेके कारण वह उनके नाम न बतला सका । अब कुमारने मनमें कहा,--“वानरीमे जो बात कही थी, वे सस्य मालूम होती हैं। मुनिकी बातोंसे
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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