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________________ * सप्तम सग * ४७१ मिली है। किसीने ठीक ही कहा है कि : "अति लोभो न कर्तव्यो, लोभं नैव परित्यजेत् । __ अति लोभाभिभूतात्मा, कुट्टिनी रासभो कृता ।" अर्थात्-"न तो बहुत अधिक लोभ हो करना चाहिये, न एकदम उसका त्याग ही करना चाहिये, क्योंकि अतिलोभके ही कारण बुड़ियाको गधी होना पड़ा।" __ अनन्तर राजाके अनुरोधसे वयरसेनने बुढ़ियाको दूसरा फल सुंघा कर फिर उसे स्त्री बना दिया। इसके बाद उससे अपनी पादुकायें लेकर उसे छोड़ दिया। ___ राजा अमरसेनने अब वयरसेनको अपना युवराज बना दिया और दोनों जन बहुत दिनोंतक प्रजा-पालन करते हुए आनन्द करते रहे। इसके बाद उन्होंने अपने पिताको बुलाकर कहा,“पिताजी! आप यहीं आनन्दसे रहिये और इस राज्यको भी अपना ही समझ कर इसे सम्हालिये। हम दोनों जन आपके आज्ञाकारी सेवक बन कर रहेंगे।" इसके बाद दोनों भाइयोंने विमाताके पैरों गिर कर कहा-"माता! यह सारा राज्य हमें आपको ही कृपासे प्राप्त हुआ है।” इस तरह कहते हुए उन्होंने अपर माताका भी सत्कार किया और उसके मनका मैल दूर कराया। इसके बाद उस मातंगको जिसने उनका प्राण बचाया था, बुलाकर उसे मातंगों (मेहतरों) का अधिकारी बना दिया। इस प्रकार अमरसेनने पुनः अपने परिवारमें स्नेह तथा सौहार्द्र उत्पन्न किया और सबके साथ हिलमिल कर ऐश्वर्य भोग करने लगा।
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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