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________________ * सप्तम सा * धरने अपनी प्रज्ञप्ति विद्याको अधिष्ठायिका प्रक्षनिदेवीसे पूछा कि-“हे माता! मेरा यह विमान क्यों नहीं चलता?" देवीने कहा,-“हे राजन् ! यहां एक नवीन पार्श्वनाथका बिम्ब है। उसकी बन्दना किये बिना विमान आगे नहीं बढ़ सकता।" देवी की यह बात सुन वह जिलेश्वरकी पूजा-वन्दना करनेके लिये विमानके साथ नीचे उतर पड़ा और पवित्र हो जिनपूजन किया। उस समय उसको उगलीमें सोनेको एक चतुर्दशवर्णिका अंगूठी थी। वह स्पर्श पाषाणके जिन-बिम्बको स्पर्श करते हो षोडशवर्णिका हो गयी। यह देखकर विद्याधरको बड़ा ही आश्चर्य हुआ और उसने स्थिर किया कि यह जिनदल ( पाषाण ) का ही प्रभाव है। अब उसके मनमें लोभ समाया और वह उस प्रतिमाको वहां से उठाकर चलता बना। यह देखकर सब लोग उसके पोछे दौड़े और उससे युद्ध करना आरम्भ किया। उसी समय अचामक वहां सिंहलद्वीपका रावण नामक राजा आ पहुंचा। उसने एक मास पर्यन्त युद्ध कर उस विद्याधरको पराजित किया और उससे वह प्रतिमा छीन कर सिंहलद्वीप (लडा ) उठा ले गया। वहां एक प्रासादमें उस बिम्बकी स्थापना की और पूजा तथा नाटकादि कर उसकी भक्ति करने लगा। इसी तरह पचास वर्ष व्यतीत हो गये । ___एक बार पार्श्वजिनके सम्मुख रावण स्वयं वीणा बजा रहा था और मन्दोदरी गायन तथा नृत्य कर रही थी। उस समय वीणा बजाते-बजाते उसकी तांत टूट गयी। यह देख रावणने
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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