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________________ ४३८ * पाश्र्श्वनाथ चरित्र * राज ! अब कृपया बतलाइये कि जिन-प्रतिमा किस प्रकार तैयार करायी जाय ?” शुकने कहा, "है श्रेष्ठिन् ! उस पर्वतपर गुफाके समीप एक श्वेत पलाश है। उसका काष्ट लाकर पुरुषके आकारका एक पुतला बनाइये उसके कंठमें यह फल बांधिये और सिरपर चिन्तामणि रत्न रखिये। ऐसा करनेसे वह काष्ट पुरुष अधिष्ठायक देवताके प्रभावसे प्रतिमा तैयार करेगा; किन्तु उससे सर्व प्रथम प्रतिमा ही तैयार करवानी न होगो । पहले अन्यान्य काष्ट लाकर दरवाजे और किंवाडोंके साथ एक काष्टमन्दिर तैयार करवाना होगा । मन्दिर तैयार हो जानेपर स्पर्श पाषाण और काष्ट पुरुषको उसके अन्दर ले जाना होगा। वहां मन्दिरके अन्दर उस काष्ठ नरको सर्व प्रथम शाल्मलि वृक्षके फल और पुष्प देने होंगे। इसके रससे वह उस शिलापर प्रतिमाका आकार अंकित करेगा। इसके बाद शाल्मलिके काष्टसे प्रतिमा गढ़ी जायगी और उसकी पेंडी या तनेसे प्रतिमापर ओप चढ़ाया जायगा । प्रतिमा तैयार कराते समय स्पर्श पाषणको लोहेका स्पर्श न होना चाहिये, न उसपर किसीकी दृष्टिही पड़नी चाहिये I प्रतिमा तैयार करनेका यह सारा काम वह काष्ठ पुरुष ही कर देगा । प्रतिमा तैयार कराते समय मन्दिरके बाहर बाजे-गाजेके साथ नृत्य कराते रहना होगा । इसी विधि से वह प्रतिमा तैयार होगी । इस कार्यको सुचारु रूपसे सम्पादन करने पर आपकी बड़ी कीर्ति होगी और साथ ही आपका भाग्योदय भी होगा ।” शुककी यह बातें सुनकर कनकको बड़ा ही आनन्द हुआ ।
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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